उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
मंगल पाण्डे
क्लास मे एक नया टीचर आया। उसका नाम था मंगल पाण्डे।
‘नहीं! नहीं! वो मंगल पाण्डे नहीं जिसने 1857 की क्रान्ति में देश की आजादी का बिगुल फूका था। बल्कि ये तो आज के जमाने का मंगल पाण्डे था। वो आठ फुट लम्बा था। देखने में बिल्कुल अमिताभ बच्चन लगता था। सर्दियों के मौसम में वो एक से एक नये-नये स्वेटर और मफलर पहन के आता था। सारे स्टूडेन्ट उसको ही देख के डिसाइड करते थे कि कौन से रंग का स्वेटर खरीदे लाल, सफेद या काला।
उसकी मुस्कान बड़ी प्यारी थी ....बिल्कुल बच्चो जैसी। वो अन्य टीचरों की तुलना में किसी भी स्टूडेन्ट को बिल्कुल भी नहीं डाँटता था। उसकी क्लास में सारे बच्चे हँस सकते थे और खूब बाते करते थे।
‘‘देखिये! आप लोग जहाँ मन करे बैठ जाइये! कोई रोक नहीं है!
जिन लोगों को भूख लगी है वो पढ़ते-2 खाना भी खा सकते है! उसके लिए भी कोई मनाही नहीं है.....पर बोलिए बस इतना तेज कि प्रिसिपल के आँफिस तक आवाज न जाए!’ वो बड़ी प्यार से धीमें स्वर में कहता था। वो देव से खूब बाते करता था। तरह तरह की बातें.....खूब सारी ज्ञान वाली बातें। वो देव को बहुत चाहता था क्लास में सबसे ज्यादा। मैंने पाया
‘‘सर! देव आपके लिए एक स्वागत गीत गाना चाहता है!’गायत्री बोली जब देव ने मंगल पाण्डे के लिए एक गीत गाना चाहा
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