उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
क्लास में और भी लड़कियाँ थी, पर सभी गायत्री की तरह बड़ी धीमी आवाज में बोलती थीं। गंगा पूरे 4-5 घण्टों तक कुछ न कुछ बोलती रहती थी, जैसे दिल्ली का एफएम लोगों का मनोरंजन करता है ...बसों, टैक्सी और मेट्रो में।
इसलिए अब देव को बड़ा सन्नाटा सा लगने लगा। अब देव को क्लासेस लम्बी और अन इंटरेस्टिंग लगने लगीं। मैनें महसूस किया...
आज भी संगीता अकेले आयी थी जो हमेशा गंगा के साथ आती थी।
‘‘संगीता! आजकल गंगा नहीं आ रही है?‘‘ देव ने जानना चाहा।
‘‘उसके बाबू ने फिर से नौकरों को डाँट दिया। दोनों नौकरों ने एक बार फिर से काम छोड़ दिया!‘‘ संगीता बोली।
‘‘अच्छा!‘‘ देव को थोड़ा आश्चर्य हुआ।
‘‘इसलिए गंगा और उसकी अम्मा समोसे, मिठाइयाँ ,वगैरह बना रही हैं नौकरो के न होने के कारण‘‘ संगीता बोली।
‘‘संगीता! क्या उसके बाबू बहुत स्टिक्ट हैं? देव ने चिंतित होकर पूछा।
‘‘अरे! बहुत ज्यादा!‘‘ संगीता ने जोर देकर कहा।
‘‘मैंने पिछले 4-5 सालों में उन्हें हँसते हुये नहीं देखा!‘‘संगीता बोली।
वो हँसते क्यों नहीं?‘‘देव ने कारण जानना चाहा।
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