उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
रानीगंज
सुबह हुई।
देव कालेज पहुँचा। देव ने संगीता से गंगा के घर का पता लिया और पैदल ही पैदल बिल्कुल पागलों की तरह दौड़ने लगा रानीगंज की ओर ....।
रानीगंज - एक बहुत छोटा सा कस्बा। गोशाला का एक विकास खण्ड। आबादी 6 हजार। लोगों का मुख्य पेशा कृषि और पशुपालन। लोगों के रहन-सहन का स्तर निम्न। मैंने पाया...
‘‘मिट्टी के घड़ों, सुराही, गुल्लक की दुकानें। चूड़ा, गट्टे, चीनी के सफेद-2 बताशों की दुकानें। लोहार, नाई, दर्जी की दुकानें। जमीन पर टाट वाला बोरा बिछाकर कई पार्टीशन कर उसमें विभिन्न प्रकार की दाल, चावल व अन्य अनाज बेचने वाली दुकानें। प्लास्टिक के खिलौने वाली दुकानें। देव ने देखा।
‘‘अरे बाप रे! ये तो बिल्कुल दबंग पिक्चर की शूटिंग लोकेशन लगती है!‘‘ देव को बड़ा आश्चर्य हुआ इस शुद्ध देशी बाजार को देखकर।
‘‘यहाँ रहती है मेरी गंगा?‘‘ जैसे देव को विश्वास ही नहीं हो रहा था। मैंने नोटिस किया...
फिर देव कुछ और बढ़ा...
‘‘ये बड़े-बड़े कद्दू, बोरा के बोरा आलू, बड़ी-बड़ी फूलगोभी सफेद-सफेद बिल्कुल वैसी जैसी टीवी में विज्ञापन में दिखाते हैं। देव ने पाया। फिर.... गोल-गोल बैंगनी रंग के बैंगन भर्ते वाले, हरी-हरी शिमला मिर्च, पालक, सोयामेथी, बन्दगोभी और न जाने क्या-क्या रानीगंज की सब्जी मंडी में। देव को ये बहुत पसन्द आयी।
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