उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
छह महीने बाद
सावित्री की सलाह
गोशाला, दिल्ली से छह सौ सत्ताइस किमी दूर उत्तर प्रदेश का एक छोटा सा जिला।
आबादी एक लाख बीस हजार। आबादी हिन्दू बाहुल्य क्षेत्र। लोगों का मुख्य पेशा कृषि और पशुपालन। ना ही दिल्ली की तरह कोई कम्पनी, ना ही धुआँ छोड़ती कोई फैक्टरी। न ही करोड़ों वाली आबादी की भीड़-भाड़, बसों में दौड़ कर चढ़ने की परम्परा, ना ही मेट्रो की हर 5-5 मिनट में आवाजाही।
गोशाला में था तो सिर्फ दूर-दूर तक क्षितिज में नीला आसमान और नीचे बस खेत ही खेत। गेहूँ, गन्ना, सरसों की फसलें। 3-3 चीनी की मिलें, जितनी मन आए उतनी चीनी खाओं। ताजी-ताजी सब्जियों की खेती। मीठे-मीठे आम व अमरूद के सैंकड़ों बगीचे।
गोरा रंग, गोल चेहरा, बड़ी-बड़ी आँखें, आँखों पर बड़ी सुन्दर भौंहे की नक्काशी, गुलाबी पतले-पतले होठों वाला देव अपने घर गोशाला लौट आया था अपनी जान से प्यारी माँ सावित्री के पास रहने के लिए दिल्ली से अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद।
देव! बावन साल की सावित्री की एकलौती संतान, इसलिए उसकी जान का टुकड़ा। मैंने महसूस किया...
‘दिल्ली वाली ट्रेन बस कुछ ही देर में आने वाली है!’ मनोहर मामा ने अपनी रिस्ट वाच बैचैनी से देखी। वो देव को लेने के लिए अपनी अमबेसडर कार ले आये थे गोशाला के स्टेशन पर।
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