उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘अच्छा!‘‘ देव को गायत्री का ये प्लान समझ में आया। काफी अच्छा लगा।
‘‘आज हो जाये देव! आर या पार!‘‘ गायत्री ने गजब का उत्साह दिखाया। उसमें काफी जोश-खरोश आ गया था।
‘‘प्यार किया तो डरना क्या?‘‘ गायत्री ने पूछा।
पक्का जाऊँ?‘‘ देव ने फिर से पूछा।
‘‘हाँ! हाँ! अगर वो तुम्हें मारेगी तो मैं बीच में आ जाऊँगी, कोई ना कोई बहाना बनाकर तुम्हें बचा लूँगी!‘‘ गायत्री ने विश्वास दिलाया।
‘‘गायत्री! मजाक मत करो! तुम जानती हो कि वो बिना सीगों वाली बैल है पर उसके सींग कभी भी निकल सकते है!‘‘ देव ने चिन्ता जताई।
गायत्री ने सुना।
‘‘अच्छा तो ठीक है.... उस लेटर में जो लिखा है उसे तुम इंग्लिश में बोल दो!‘‘ गायत्री ने अपने प्लान में और सुधार किया।
देव ने सुना।
‘‘हाँ! ये बढि़या आइडिया है!‘‘ देव ने भी माना।
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‘‘गंगा!‘‘ देव ने गंगा को पुकारा और कुछ कहने की इच्छा जताई। वो गंगा के ठीक सामने जाकर बैठ गया था। मैंने पाया...
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