उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘हाँ! बोलो-बोलो!‘‘ गंगा बोली। आज वो काफी अच्छे मूड में थी।
‘‘गंगा वेन यू डोन्ट कम, आई डोन्ट वान्ट टू कम इन द क्लास! देव बोला इंग्लिश में।
गंगा ने सुना।
‘‘गंगा! यू आर नाँट इन द क्लास, आई डोन्ट वाँन्ट टू स्टडी‘‘ देव फिर बोला।
गंगा ने सुना।
‘‘गंगा! वेन यू गो टू होम, आई फील वेरी बैड!‘‘ देव ने सच-सच कहा बड़ी ईमानदारी से।
गंगा ने सुना।
‘‘इ अँग्रेजी मा का भौंकत हो?‘‘ गंगा बोली। उसके पल्ले कुछ न पड़ा। गायत्री और संगीता ने पाया। देव ने भी।
गंगा का जैसे टेस्ट हो गया। उसकी चोरी पकड़ी गई। जो लड़की बड़ा-बड़ा हाँक रही थी, कह रही थी कि टीइटी की तैयारी अकेले ही कर लेगी ..उसे इंग्लिश बिल्कुल भी नहीं आती थी। गंगा ने साफ-साफ झूठ बोला था कि उसे इंग्लिश आती है। रानीगंज जैसे महादेहात में रहकर, दिन-रात समोसे, पूडि़याँ व मिठाइयाँ बनाकर गंगा का रहा-सहा ज्ञान भी खत्म हो गया था। अब सभी ने जाना।
देव ने एक लम्बी साँस भरी, पहली वाली को छोड़ते हुए। मैंने देखा...
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