उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘गंगा! जब तू पढ़ै नाई आवत हो! तब हमार पढ़ै का मना नाईं करत है!‘‘ देव बोला।
‘‘गंगा! जब तू जाए लागत हो, तब हमका बड़ा खराब लागत है!‘‘ देव ने कहा सच-सच, किसी तरह हिम्मत करके इधर-उधर देखते हुए... एक हथेली से दूसरी हथेली को बड़ी बेचैनी से मसलते हुए। देव का चेहरा मारे शर्म ओ हया के लाल हो गया था। मैंने गौर किया। ये पहली बार था जब देव ने किसी लड़की से दिल की बात कही थी। मैंने जाना....
गंगा ने सुना। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि देव ने स्थानीय अवधी भाषा कब सीख ली? कैसे देव रानीगंज की गाँववाली भाषा में बात कर रहा है? सच तो ये था कि देव ने स्थानीय ग्रामीण भाषा गंगा के लिए सीखी थी जिससे गंगा को देव अपना सा लगे और गंगा देव से शादी कर ले।
अब गंगा को पता चला कि देव उससे प्यार करने लगा है, उसे चाहने लगा है। मैंने जाना....
‘‘अच्छा ये पाजिटिव है या निगेटिव?‘‘ गंगा ने पूछा।
अब ये कौन सा राँकेट गंगा ने अपने काँम्पलेक्स माइन्ड से छोड़ा? मैंने सोचा....
‘‘ये पाजिटिव-निगेटिव क्या होता है?‘‘ देव ने अज्ञानता में कंधे उँचकाये।
कुछ क्षणों के लिए वातावरण में खामोशी छा गई। गायत्री और संगीता ने इस अजीब सी स्थिति को देखा। तब संगीता ने देव के कान में कुछ कहा.....
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