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यात्रा वृत्तांत >> घुमक्कड़ शास्त्र

घुमक्कड़ शास्त्र

राहुल सांकृत्यायन

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9565
आईएसबीएन :9781613012758

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यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण

नारी के प्रति जिन पुरुषों ने अधिक उदारता दिखाई, उनमें मैं बुद्ध को भी मानता हूँ। इनमें शक नहीं, कितनी ही बातों में वह समय से आगे थे, लेकिन तब भी जब स्त्री को भिक्षुणी बनाने की बात आई, तो उन्होंने बहुत आनाकानी की, एक तरह गला दबाने पर स्त्रियों को संघ में आने का अधिकार दिया। अपने अंतिम समय, निर्वाण के दिन, यह पूछने पर कि स्त्री के साथ भिक्षु को कैसा बर्ताव करना चाहिए, बुद्ध ने कहा - “अदर्शन” (नहीं देखना)। और देखना ही पड़े तो उस वक्त दिल और दिमाग को वश में रखना।

लेकिन मैं समझता हूँ, यह एकतरफा बात है और बुद्ध के भावों के विपरीत है, क्योंकि उन्होंने अपने एक उपदेश में और निर्वाण-दिन से बहुत पहले कहा था –

“...नाहं भिक्ख वे, अञ्ञं एकरूपं पि समनुपस्सापपि, यं एवं पुरिसस्सा चित्तं परियोदाय तिट्ठति यथयिदं भिक्ख.वे, इत्थिरूपम्..., इत्थिसद्दो..., इत्थिफोट्ठब्बोत...। नाहं भिक्खे, अंञ्ञं एकरूपंपि समनुपस्सातमि यं एवं इत्थियाचित्तम् परियोदाय तिट्ठति यथयिदम् भिक्ख.वे, पुरिसरूपं...पुरिस-सद्दो...., पुरिस-गंधो..., पुरिसरसो..., पुरिसफोट्ठब्बोक...।
  - अंगुत्तर निकाय 1/1/1

“भिक्षुओ! मैं ऐसा एक भी रूप नहीं देखता, जो पुरुष के मन को इस तरह हर लेता है जैसा कि स्त्री का रूप... स्त्री का शब्द ...स्त्री की गंध... स्त्री का रस... स्त्री का स्पर्श...।”

इसके बाद उन्होंने यह भी कहा - “भिक्षुओं! मैं ऐसा एक भी रूप नहीं देखता, जो स्त्री के मन को इस तरह हर लेता है, जैसा कि पुरुष का रूप... पुरुष का शब्द... पुरुष की गंध... पुरुष का रस... पुरुष का स्पर्श...।”

बुद्ध ने जो बात यहाँ कही है, वह बिलकुल स्वाभाविक तथा अनुभव पर आश्रित है। स्त्री और पुरुष दोनों एक दूसरे की पूरक इकाइयाँ हैं। 'अदर्शन' उन्होंने इसीलिए कहा था, कि दर्शन से दोनों को उनके रूप, शब्द , गंध, रस, स्पर्श एक दूसरे के लिए सबसे अधिक मोहक होते हैं। सारी प्रकृति में इसके उदाहरण भरे पड़े हैं। स्त्री के साथ पुरुष की अधिक घनिष्ठता या पुरुष के साथ स्त्री की अधिक घनिष्ठता यदि एक सीमा से पार होती है, तो परिणाम केवल प्लातोनिक प्रेम तक ही सीमित नहीं रहता। इसी खतरे की ओर अपने वचन में बुद्ध ने संकेत किया है। इसका यही अर्थ है कि जो एक ऊँचे आदर्श और स्वतंत्र जीवन को लेकर चलने वाले हैं, ऐसे नर-नारी अधिक सावधानी से काम लें। पुरुष प्लातोनिक प्रेम कहकर छुट्टी ले सकता है, क्योंकि प्रकृति ने उसे बड़ी जिम्मेमदारी से मुक्त कर दिया है, किंतु स्त्री कैसे वैसा कर सकती है?

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