यात्रा वृत्तांत >> घुमक्कड़ शास्त्र घुमक्कड़ शास्त्रराहुल सांकृत्यायन
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यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण
स्त्री के घुमक्कड़ होने में बड़ी बाधा मनुष्य के लगाये हजारों फंदे नहीं हैं, बल्कि प्रकृति की निष्ठुतरता ने उसे और मजबूर बना दिया है। लेकिन जैसा मैंने कहा, प्रकृति की मजबूरी का अर्थ यह हर्गिज नहीं है, कि मानव प्रकृति के सामने आत्म-समर्पण कर दे। जिन तरुणियों को घुमक्कड़ी-जीवन बिताना है, उन्हें मैं अदर्शन की सलाह नहीं दे सकता और न यही आशा रख सकता हूँ, कि जहाँ विश्वामित्र-पराशर आदि असफल रहे, वहाँ निर्बल स्त्री विजय-ध्वजा गाड़ने में अवश्य सफल होगी, यद्यपि उससे जरूर यह आशा रखनी चाहिए, कि ध्वजा को ऊँची रखने की वह पूरी कोशिश करेगी। घुमक्कड़ तरुणी को समझ लेना चाहिए, कि पुरुष यदि संसार में नए प्राणी के लाने का कारण होता है, तो इससे उसके हाथ-पैर कटकर गिर नहीं जाते। यदि वह अधिक उदार और दयार्द्र हुआ तो कुछ प्रबंध करके वह फिर अपनी उन्मुक्त यात्रा को जारी रख सकता है, लेकिन स्त्री यदि एक बार चूकी तो वह पंगु बनकर रहेगी। इस प्रकार घुमक्कड़-व्रत स्वीकार करते समय स्त्री को खूब आगे पीछे सोच लेना होगा और दृढ़ साहस के साथ ही इस पथ पर पग रखना होगा। जब एक बार पग रख दिया तो पीछे हटाने का नाम नहीं लेना होगा।
घुमक्कड़ों और घुमक्कड़ाओं, दोनों के लिए अपेक्षित गुण बहुत-से एक-से हैं, जिन्हें कि इस शास्त्र् के भिन्न-भिन्न स्थानों में बतलाया गया है, जैसे स्त्री के लिए भी कम-से-कम 18 वर्ष की आयु तक शिक्षा और तैयारी का समय है, और उसके लिए भी 20 के बाद यात्रा के लिए प्रयाण करना अधिक होगा। विद्या और दूसरी तैयारियाँ दोनों की एक-सी हो सकती हैं, किंतु स्त्री चिकित्सा में यदि विशेष योग्यता प्राप्त कर लेती है, अर्थात् डाक्टेर बनके साहस-यात्रा के लिए निकलती है, तो वह सबसे अधिक सफल और निर्द्वंद्व रहेगी। वह यात्रा करते हुए लोगों का बहुत उपकार कर सकती है। जैसा कि दूसरी जगह संकेत किया गया, यदि तरुणियाँ तीन की संख्या में इकट्ठा होकर पहली यात्रा आरंभ करें, तो उन्हें बहुत तरह का सुभीता रहेगा। तीन की संख्या् का आग्रह क्यों ? इस प्रश्न का जवाब यही है कि दो की संख्या अपर्याप्त है, और आपस मे मतभेद होने पर किसी तटस्थ हितैषी की आवश्यकता पूरी नहीं हो सकती। तीन की संख्या में मध्यस्थ सुलभ हो जाता है। तीन से अधिक संख्या भीड़ या जमात की है, और घुमक्कड़ी तथा जमात बाँधकर चलना एक दूसरे के बाधक हैं। यह तीन की संख्या भी आरंभिक के लिए है, अनुभव बढ़ने के बाद उसकी कोई आवश्यककता नहीं रह जाती।
“एको चरे खग्गर विसाण-कप्पोन” (गैंडे के सींग की तरह अकेले विचरे), घुमक्कड़ के सामने तो यही मोटो होना चाहिए।
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