कविता संग्रह >> कह देना कह देनाअंसार कम्बरी
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आधुनिक अंसार कम्बरी की लोकप्रिय ग़जलें
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जाने कितने फूल शबनम से भिगोती है सहर
जाने कितने फूल शबनम से भिगोती है सहर
ऐसा लगता है के सारी रात रोती है सहर
शाम के होते ही होते रोज़ मर जाता है दिन
रोज़ आकर ज़िन्दगी के बीज बोती है सहर
देखती रहती है ख़्वाबों की शरारत रातभर
और ताबीरों को सारा दिन सँजोती है सहर
जब समन्दर की सतेह से झाँकता है आफ़ताब
तब कहीं जाकर सितारों को डुबोती है सहर
चाँद-सूरज और दुनिया का है चक्कर ‘क़म्बरी’
किस तरह होती है शाम और कैसे होती है सहर
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