कविता संग्रह >> कह देना कह देनाअंसार कम्बरी
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आधुनिक अंसार कम्बरी की लोकप्रिय ग़जलें
१०
बह रही है जहाँ पर नदी आजकल
बह रही है जहाँ पर नदी आजकल
जाने क्यूँ है वहीं तश्नगी आजकल
अपने काँधे पे अपनी सलीबे लिये
फिर रहा है हर एक आदमी आजकल
बोझ काँधों पे है, ख़ार राहों में हैं
आदमी की ये है ज़िन्दगी आजकल
पाँव दिन में जलें, रात में दिल जले
घूप से तेज़ है चाँदनी आजकल
एक तुम ही नहीं हो मेरे पास बस
और कोई नहीं है कमी आजकल
अपना चेहरा दिखाये किसे ‘क़म्बरी’
आईना भी लगे अजनबी आजकल
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