कविता संग्रह >> कह देना कह देनाअंसार कम्बरी
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आधुनिक अंसार कम्बरी की लोकप्रिय ग़जलें
५२
आख़री दौर में हैं जीवन के
आख़री दौर में हैं जीवन के
मीत अब तक नहीं मिले मन के
ख़ुद को पहचानना हुआ मुश्किल
सामने आ गये जो दर्पन के
नाँचने की कला नहीं आती
दोष बतला रहे हैं आँगन के
आप पत्थर के हो गये जबसे
थाल सजने लगे हैं पूजन के
‘क़म्बरी’ मन के दीप से अब भी
रौशनी आ रही है छन-छन के
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