कविता संग्रह >> कह देना कह देनाअंसार कम्बरी
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आधुनिक अंसार कम्बरी की लोकप्रिय ग़जलें
५४
जाने कैसे हमारा मकाँ जल गया
जाने कैसे हमारा मकाँ जल गया
हम तो निकले थे घर से बुझा के दिया
ख़ुद की आवाज़ भी कोई सुनता नहीं
इस शहर में किसी से कहें भी तो क्या
हमने अपना गरेबान देखा नहीं
इसका दामन सिया, उसका दामन सिया
थी सभी में शराब, एक में था ज़हर
जाम हमने ख़ुशी से वही पी लिया
कोई भेजे तभी तो मिले ख़त मुझे
क्या करे ‘क़म्बरी’, क्या करे डाकिया
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