कविता संग्रह >> कह देना कह देनाअंसार कम्बरी
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आधुनिक अंसार कम्बरी की लोकप्रिय ग़जलें
५५
रौशनी नहीं होती आजकल मशालों में
रौशनी नहीं होती आजकल मशालों में
मंज़िलें नहीं मिलती इसलिये उजालों में
वक़्त के शिकंजे से किस तरह हो छुटकारा
क़ैद हो गया जीवन बेबसी के तालों में
क्यों इधर अँधेरा है, क्यों उधर उजाला है
ज़िन्दगी तो उलझी है सिर्फ़ दो सवालों में
नाम अब तेरा सुकरात आ रहा है होठों पर
फिर किसी ने घोला है क्या ज़हर प्यालों में
एक तरफ नमाज़ें हैं और एक तरफ पूजा
फर्क़ सिर्फ़ इतना है मस्जिदों-शिवालों में
मानती रही दुनिया कवि या उसे शायर
जो दिखे हैं मंचो पर या मिलें रिसालों में
‘क़म्बरी’ सजग रहना, यह अजीब बस्ती है
भेड़िये भी मिलते हैं, आदमी की खालों में
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