कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
109. आज जहाँ कहीं भी देखें
आज जहाँ कहीं भी देखें
नारी का जीवन सुरक्षित नहीं
कहीं मार देते गर्भ में
कहीं वासना का शिकार हुई
औरत की इज्जत का बचना
कहाँ अब सुरक्षित रहा।
कहाँ आज मैं सुरक्षित हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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