कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
110. आज समाज में औरत को
आज समाज में औरत को
समझते हैं वासना का जरिया
जहाँ मिले पकड़ लेते हैं
कर देते हैं इज्जत घटिया।
नारी को फूल तुम समझो
मत कुचलो यूँ अपने हाथों
आज ये तुम्हें बताती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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