कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
38. सुनकर यह रहा ना गया
सुनकर यह रहा ना गया
पिता को बीच में टोक दिया
मेरी खातिर क्यों तुम पापा
बेचते हो अपना ये आशियाँ
मैं अपनी खुशियों की खातिर
छोड़ दँ आपको सड़क पर
मैं भी कैसी अभागिन हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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