कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
78. आँखों से मैं अंधी
आँखों से मैं अंधी
लकड़ी बिन बे-सहारा
इस बूढ़ी उम्र में देखो
कोई नही मेरा सहारा
लेकर चला बड़ा बेटा
दिल पत्थर, शरीर का हट्टा
यही सोचकर रोती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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