कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
81. भटक रास्ता मारी-मारी
भटक रास्ता मारी-मारी
फिर रही मैं बेचारी
पैर फिसला, गिर गई नहर में
सर्दी उस दिन थी भारी
काँटे चुभने लगे तन में
जीने की इच्छा थी मन में
पानी में तैरती डूबती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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