कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
83. लेकर घर गया अपने तो
लेकर घर गया अपने तो
पत्नी उसकी खुश हुई
हर दिन मेरी सेवा करती
माँ से बढ़कर मुझे मानती
भूल गई मैं पिछली बातें
और गम भरी सारी वो रातें
अब फूली ना मैं समाती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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