कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
88. पोते को गोद में सुलाते हुए
पोते को गोद में सुलाते हुए
बस यूँ ही धरती कुरेदने लगी
तभी अचानक जाने मुझको
सोने की मटकी हाथ लगी।
पता नही क्या होगा ये
मन में अपने सोच के ये
झट बेटे को बुलाती हूँ,
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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