कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
|
6 पाठकों को प्रिय 268 पाठक हैं |
मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
89. फिर दोनों दौड़कर आते हैं
फिर दोनों दौड़कर आते हैं
मन में वो घबराते हैं
पता नही क्या हुआ होगा
प्रश्नवाचक मुद्रा में आते हैं
पूछते हैं मुझको क्या हुआ
एक बार कहो तो प्रिये माँ
तब उनको हांडी मैं दिखलाती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
¤ ¤
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book