कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
91. तब बेटे को कहती हूँ
तब बेटे को कहती हूँ
अब बेटे तुम धर्म करो
चारों तरफ के सभी गाँवों में
अब तुम सबको न्यौता दो।
मन से अब खर्चा करो बेटा
भाग्यवान है ये अपना बेटा।
मैं बेटे को समझाती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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