व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> नया भारत गढ़ो नया भारत गढ़ोस्वामी विवेकानन्द
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संसार हमारे देश का अत्यंत ऋणी है।
भारत के सत्यानाश का
मुख्य कारण यही है कि देश की संपूर्ण विद्या-बुद्धि
राज-शासन और दंभ के बल से मुट्ठी भर लोगों के एकाधिकार में रखी गयी है।
भारत के दरिद्रों, पतितों और पापियों का कोई साथी नहीं, कोई सहायता
देनेवाला नहीं वे कितनी ही कोशिश क्यों न करे, उनकी उन्नति का कोई उपाय
नहीं। वे दिन पर दिन डूबते जा रहे हैं। कूर समाज उन पर जो लगातार चोटें कर
रहा है, उसका अनुभव तो वे खूब कर रहे हैं, पर वे जानते नहीं कि वे चोटें
कहां से आ रही हैं। सदियों तक वे धनी-मानियों की आशा सिर-आँखों पर रखकर
केवल लकड़ी काटते और पानी भरते रहे हैं। उनकी यह धारणा बन गयी कि मानो
उन्होंने गुलाम के रूप में ही जन्म लिया है। हमारे इस देश में, इस वेदांत
की जन्मभूमि में हमारा जनसाधारण शत-शत वर्षों से संमोहित बनाकर इस तरह की
हीन अवस्था में डाल दिया गया है। उनके स्पर्श में अपवित्रता समायी है,
उनके साथ बैठने से छूत समा जाती है। उनसे कहा जा रहा है, निराशा के अंधकार
में तुम्हारा जन्म हुआ है, सदा तुम इस अँधेरे में पड़े रहो। और उसका परिणाम
यह हुआ कि वे लगातार डूबते चले जा रहे हैं, गहरे अँधेरे से और गहरे अँधेरे
में डूबते चले जा रहे हैं। अंत में मनुष्य जितनी निकृष्ट अवस्था तक पहुँच
सकता है, वहाँ तक वे पहुँच चुके हैं।
क्या कारण है कि संसार के
सब देशों में हमारा देश ही सब से अधिक बलहीन और
पिछड़ा हुआ है? इसका कारण यही है कि वहाँ शक्ति का निरादर होता है। स्मृति
आदि लिखकर, नियम-नीति में आबद्ध करके इस देश के पुरुषों ने स्त्रियों को
एकदम बच्चा पैदा करने की मशीन बना डाला है। फिर अपने देश की दस वर्ष की
उम्र में बच्चों को जन्म देनेवाली बालिकाएँ!!! प्रभु, मैं अब समझ रहा हूँ।
हे भाई, 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:! (जहाँ नारियों की
पूजा होती है, वहाँ देवता प्रसन्न रहते हैं) वृद्ध मनु ने कहा है। हम
महापापी हैं, स्त्रियों को 'घृणित कीड़ा’, 'नरक का द्वार' इत्यादि कहकर हम
अधःपतित हुए हैं। बाप रे बाप! कैसा आकाश-पाताल का अंतर है।
'याथातथअयतोऽर्थान् व्यदधात्। (जहाँ जैसा उचित हो ईश्वर वहाँ वैसा कर्मफल
का विधान करते हैं। - ईशोपनिषद्) क्या प्रभु झूठी गप्प से भूलनेवाला है?
प्रभु ने कहा है, 'त्वं स्त्री त्वं पुमानसि त्वं कुमार उत वा कुमारी'
(तुम्हीं स्त्री हो और तुम्हीं पुरुष, तुम्हीं क्वांरे हो और तुम्हीं
क्वाँरी। - श्वेताश्वतरोपनिषद्) इत्यादि और हम कह रहे हैं, 'दूरमपसर रे
चाण्डाल' (रे चाण्डाल, दूर हट), 'केनैषा निर्मिता नारी मोहिनी' (किसने इस
मोहिनी नारी को बनाया है?) इत्यादि।
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