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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592
आईएसबीएन :9781613011072

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


‘‘तो बनवा लो।’

‘नहीं बनवा सकता। मैं पाकिस्तान का रहने वाला नहीं हूँ।’

‘ओह! मगर तुम ‘क्रिमिनल’ तो नहीं हो?’

‘नहीं-नहीं। मैं एक भद्र पुरुष हूँ।’

‘कहाँ के रहने वाले हो?’

‘यदि आप वचन दें कि इस देश में किसी को बतायेंगी नहीं तो मैं बता सकता हूँ?’

‘मैं तुम्हें वचन देती हूँ।’

‘मैं ‘इण्डियन सिटिजन’ हूँ। वहाँ वायु-सेना का एक अफसर था। पिछले युद्ध में हमारे स्क्वैड्रन ने एक पाकिस्तानी राडार को तोड़ देने के लिये आक्रमण किया। मैं राडार तोड़ने में सफल हो गया, परन्तु वापस लौटते हुए हवाई जहाज के टैंक में आग लग गयी और हवाई जहाज आकाश में ही विस्फोट से फट गया। मैं पैराशूट से कूदा तो एक गाँव में एक मकान की छत्त पर जा गिरा।

‘‘वहाँ के लोग मुझे शत्रु का आदमी समझ मारने दौड़े तो मैंने अपने को मुसलमान और पाकिस्तानी मित्र प्रकट किया। मकान वालों को तो मैंने अनुकूल बना लिया, परन्तु गाँव के लोगों को विश्वास नहीं आया। एक रात घर वालों ने मुझे छुपा कर रखा। रात के समय घर की एक लड़की की सहायता से गाँव से भाग आया और कराची पहुँच गया।

‘यहाँ कई दिन से मैं बेकार घूम रहा हूँ।’

‘तो तुम फ्रांस चलो और फिर वहाँ से अपनी नौकरी से छुट्टी ले, वहाँ ही रहना। यदि ऐसा करो तो मैं तुम्हारे यहाँ से निकलने का प्रबन्ध कर सकती हूँ।’

‘कृपया अवश्य करिये।’

‘तुम कहाँ रहते हो?’

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