उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
|
352 पाठक हैं |
भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘सड़को के किनारे घूमता रहता हूँ। रात को किसी सराय में आठ आने दे सो जाता हूँ।’
‘‘मैंने फातिमा की बात नहीं बतायी। यदि बताता तो यह मुझे अपने साथ लाती अथवा नहीं, जानता नहीं था।
‘‘इस लड़की ने कहा, ‘मैं एक अच्छी-खासी अमीर लड़की हूँ। साथ ही तुम फ्रांस में हवाई कम्पनी में नौकरी कर सकते हो। मगर मैं चाहूँगी कि तुम मेरे साथ रहो।’
‘‘मुझे सन्देह हुआ कि यह भी फातिमा की भाँति मुझसे विवाह करना चाहती है। मैंने इस विषय पर बात नहीं की। मैं तो पाकिस्तान से निकलना चाहता था।
‘‘मैंने कहा, ‘मैं अति अनुगृहीत हूँगा। आप प्रबन्ध करिये।’
उसने मुझे होटल के एक पृथक् कमरे में ठहरा दिया और स्वयं फ्रेंच ऐम्बेसी में गयी। उस रात मैं फातिमा वाले होटल में नहीं गया। अगले दिन सूसन मेरा एक नकली पासपोर्ट और विसा बनवा लायी और मैं उसके साथ दस घण्टे में पैरिस पहुँच गया। वहाँ से हम रेल द्वारा लियौन पहुँच गये।
‘‘यह वह एक बड़े मकान में रहती है। इसकी माँ यहाँ इंगलैण्ड के एक रईस की बीवी थी। इसकी माँ का देहान्त हो चुका है, परन्तु पिता जीवित है। यह वहाँ अपनी नानी की सम्पत्ति पर गुज़ारा करती है। वह इसकी माँ को इसकी नानी ने दी थी और माँ ने इसको दी है। इसका पिता इसकी विमाता के पास रहता है।
‘‘लियौन में पहुँच इसने मुझे अपना पति बना लिया। हमारा विवाह गिरजाघर में नहीं हुआ। अब यह मेरी पूर्ण कहानी जानती है।’’
कुलवन्त ने कहा, ‘‘भाई अमृतलाल! पीछे अपने माता-पिता को तो सूचना भेजनी थी कि तुम जीवित हो। वह तो तुम्हारा श्राद्घ कर चुके हैं। तुम्हारी पत्नी को तुम्हें मरणोपरान्त मिला अशोक-चक्र मिल चुका है।’’
‘‘मैं सूसन के मोह में फँस गया हूँ। अब भारत लौटने का विचार छोड़ दिया है।’’
|