उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘यह बात हमने सुनी है।’’ विश्वामित्र ने कहा, ‘‘और उसी के निमित्त में इन दो राजकुमारों के साथ यहाँ आया हूँ।
‘‘ये कौशल नरेश महाराज दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र राम हैं और यह इनके छोटे भाई लक्ष्मण हैं।
‘‘मैं इनको इनके पिता से अपने यज्ञ की रक्षा के लिये माँग कर लाया था। सिद्धाश्रम में इनकी रक्षा में मेरा यज्ञ निर्विघ्न समाप्त हुआ है और अब मैं इनको यहाँ आपकी मनोकामना पूर्ण करने के लिये लाया हूँ।’’
‘‘यह राम देखने में एक योग्य युवक प्रतीत होते हैं, परन्तु सीता की इच्छा से उसके वर के लिये शर्त निश्चय की गयी है कि शिव के धनुष पर जो बाण चढ़ा सकेगा, सीता का विवाह उससे ही होगा।’’
‘‘राजन्!’’ विश्वामित्र ने कहा, ‘‘यह शर्त तो अति कठोर है।
मैंने उस धनुष को देखा है। मैं समझता हूँ कि इस युग में उस पर चिल्ला चढ़ाने में कदाचित कोई योग्य नहीं होगा।’’
‘‘हाँ। बहुत से राजकुमार यहाँ आ चुके हैं और अभी तक इस शर्त को पूरा करने में कोई भी योग्य नहीं हुआ।’’
‘‘तो फिर यह कठोर शर्त किसलिये रखी है?’’
इस पर राम ने गुरुजी के कान में धीरे से कहा, ‘‘भगवन्! मेरी इच्छा उस धनुष को देखने की हो रही हैं।’’
विश्वामित्र ने एक क्षण तक आँखें मूँद पुनः आँखें खोल महाराज जनक को सम्बोधन कर कहा, ‘‘यह राजकुमार उस घनुष को देखने की इच्छा रखते हैं।’’
‘‘ठीक है। राजकुमार कल हमारे प्रासाद में पधारें तो उनको वह धनुष दिखाया जा सकता है। यदि उस पर बाण चढ़ा कर चला सके तो निस्सन्देह सीता इनको वर लेगी।’’
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