उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘परन्तु बाबा! यह धनुष कैसा था?’’ महिमा ने पूछ लिया।
विष्णुशरण ने कहा, ‘‘आज धनुष के अर्थ बाँस का बना हुआ एक छड़ होता है, जिस पर एक डोरा ऐसे बँधा रहता है कि जिससे बाँस टेढ़ा हो झुका रहता है। इस डोरे पर तीर रख उसे खींच कर तीर छोड़ देते हैं। बाँस की लचक से धकेला जाता हुआ तीर लक्ष्य-स्थान की ओर वेग से जाता है।
‘‘परन्तु मैं समझता हूँ कि यह तो एक बहुत ही सामान्य-सा यन्त्र है जो सेनानी और सामान्य जनता समान रूप में रख सकते हैं। घनुष का अर्थ ऐसे यन्त्रों से हैं जो किसी प्रहार करने वाली वस्तु को दूर फेंक सके।
‘‘इन अर्थों में पिस्तौल, बन्दूक, तोप और आजकल के युग में मिसराईल शस्त्र भी धनुष ही कहे जा सकते हैं। उन दिनों में कुछ इसी प्रकार का कोई यन्त्र रहा होगा जिसको कार्य में लाने के लिये न केवल बल, वरन् धनुर्वेद के ज्ञान की भी आवश्यकता रही होगी। केवल बल् की परीक्षा पर एक राजा की लड़की को बाजी पर लगाना समझ में आता नहीं।
‘‘इस कारण मैं तो यह समझा हूँ कि उन दिनों यह घनुष भी अति विषम ढंग से चलने वाला यन्त्र रहा होगा। राम विश्वामित्र से अनेकानेक प्रकार के शस्त्रास्त्र की शिक्षा ग्रहण कर आया था। अतः वह आशा कर रहा था कि वह इस शिव के धनुष के चलाने की विधि जान लेगा।
‘‘यह ऐसा ही प्रतीत होता है जैसे किसी अनजानी पेचीदा मशीन को कोई योग्य मैकेनिक खोल कर उस पर काम करने का ढंग जान जाये।
‘‘अगले दिन राम-लक्ष्णण विश्वामित्र के साथ राजमहल में गये। वहाँ उनको शस्त्रागार में ले जाकर धनुष दिखाया गया। यह कहा जाता है कि राम ने उसे चालू कर दिया था, परन्तु चलते-चलते वह धनुष टूट गया। इसमें कारण यह बताया जाता है कि धनुष चिरकाल से बिना प्रयोग के पड़ा हुआ पुराना हो गया था और जर्जर होने के कारण टूट गया।
‘‘इस पर भी मैं यह कल्पना करता हूँ कि धनुष चल पड़ा था और वह बाण छोड़ने लगा था।
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