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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592
आईएसबीएन :9781613011072

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


‘‘इस प्रकार धनुष के चालू किये जाने पर जनक ने सीता का विवाह राम से करना स्वीकार कर लिया।

‘‘इस बात की सूचना अयोध्या भेजी गयी और वहाँ से दशरथ अपने मन्त्रियों और पुरोहित के साथ जनकपुरी में आया और राम के विवाह के साथ-साथ उसके अन्य तीनों भाइयों का विवाह भी जनक के परिवार की कन्याओं से हो गया।

‘‘उस धनुष के टूट जाने का समाचार शिवजी के शिष्य परशुराम को मिला तो उसे बहुत क्रोध आ गया। उसका विचार था कि धनुष को ठीक ढंग से न चला सकने के कारण टूटा है। इस कारण वह राम के इस हीन कौशल की निन्दा करने जनकपुरी को चल पड़ा।

दशरथ इत्यादि राम और उसके भाइयों को विवाह कर अयोध्या लौट रहे थे कि मार्ग में अमर्ष से भरा परशुराम मिल गया। वह इस विवाह को रुकवाने के लिये जनकपुरी में जा रहा था। जब उसे पता चला कि अयोध्या से गयी बरात विवाह कर लौट रही है तो वह धनुष को तोड़ डालने का दोष राम पर लगाते हुए उसकी निन्दा करने लगा।

‘‘राम ने उसे समझाने का यत्न किया कि धनुष को पड़े-पड़े जंग लग रहा था; इस कारण वह टूटा है। इस पर परशुराम ने कह दिया, ‘‘राम! तुम झूठ बोलते हो। अपनी धनुष चलाने में अयोग्यता को छुपाने के लिये यह बहाना कह रहे हो।’’

‘‘राम को झूठ बोलने वाला कहा जाता सुन लक्ष्मण ने अपना खड्ग निकाल लिया और परशुराम को ललकारने लगा।

‘‘राम ने पुनः बीच-बचाव करने के लिये परशुराम से कहा, ‘‘भगवन्! मैं सत्य कहता हूँ। उस यन्त्र का कोई कल-पुर्जा टूट गया और सब यन्त्र विनष्ट हो गया। इसमें मेरा कोई दोष नहीं।’

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