धर्म एवं दर्शन >> श्री दुर्गा सप्तशती श्री दुर्गा सप्तशतीडॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय
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श्री दुर्गा सप्तशती काव्य रूप में
।। ॐ श्रीदुर्गायै नमः।।
सप्तम अध्याय : चण्ड मुण्ड का वध
ध्यान
ॐ
रतन सिंघासन राजि सुनत सुक सरसत
बानी।
स्याम बरन छवि धाम बजत बीना जिन पानी।।
सरसिज सम वर चरन कण्ठ कल्हवारनि माला।
कुच कंचुकि संकीर्ण मदिर मधु पीवत हाला।।
संख चषक कर में लसे भाल लाल बेंदी दिए।
अरुन बरन तन सुभग मां मातंगी बस मम हिए।।
स्याम बरन छवि धाम बजत बीना जिन पानी।।
सरसिज सम वर चरन कण्ठ कल्हवारनि माला।
कुच कंचुकि संकीर्ण मदिर मधु पीवत हाला।।
संख चषक कर में लसे भाल लाल बेंदी दिए।
अरुन बरन तन सुभग मां मातंगी बस मम हिए।।
मेधा बोले सुरथ से सुनु अब नृप इतिहास।
चण्ड मुण्ड का जिस तरह मां ने किया विनास।।१।।
चतुरंगिनी
सेन संग साजी।
लीन्हे पद रथ गज अरु बाजी।।
निज-निज वाहन भए सवारा।
चला तमीचर कटक अपारा।।
उहां हिमालय सिखर सुहावन।
कनक वरन सोहत सिंहासन।।
सिंह पीठ राजति महरानी।
जग जननी कौसिकी भवानी।।
चण्ड-मुण्ड आए जब पासा।
देखा देवि करत मृदु हासा।।
निसिचर करन लगे उद्योगा।
लै लै अस्त्र-सस्त्र निज जोगा।।
कोउ धावत साजे धनु बाना।
केहु कर चमकत कठिन कृपाना।।
जहं-तहं जूथ-जूथ बहु ठाढ़ा।
चण्डी हृदय कोह अति बाढ़ा।।
चण्डी रौद्र रूपिणी माता।
तन तें प्रगट कालिका ख्याता।।
स्याम बरन तन तेज विराजत।
कृष्णा कुटिल भृकुटि सिर भ्राजत।।
खंग पास खट्वांग विसाला।
बाघ चर्म तन, मुण्डनि माला।।
लीन्हे पद रथ गज अरु बाजी।।
निज-निज वाहन भए सवारा।
चला तमीचर कटक अपारा।।
उहां हिमालय सिखर सुहावन।
कनक वरन सोहत सिंहासन।।
सिंह पीठ राजति महरानी।
जग जननी कौसिकी भवानी।।
चण्ड-मुण्ड आए जब पासा।
देखा देवि करत मृदु हासा।।
निसिचर करन लगे उद्योगा।
लै लै अस्त्र-सस्त्र निज जोगा।।
कोउ धावत साजे धनु बाना।
केहु कर चमकत कठिन कृपाना।।
जहं-तहं जूथ-जूथ बहु ठाढ़ा।
चण्डी हृदय कोह अति बाढ़ा।।
चण्डी रौद्र रूपिणी माता।
तन तें प्रगट कालिका ख्याता।।
स्याम बरन तन तेज विराजत।
कृष्णा कुटिल भृकुटि सिर भ्राजत।।
खंग पास खट्वांग विसाला।
बाघ चर्म तन, मुण्डनि माला।।
अस्थिमात्र रह देह महं, रूधिर मांस नहिं लेस।
महा भयंकर कालिका, देखि असुर उर क्लेस।।२।।
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