Dehati Samaj - Hindi book by - Sharat Chandra Chattopadhyay - देहाती समाज - शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
लोगों की राय

उपन्यास >> देहाती समाज

देहाती समाज

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :245
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9689
आईएसबीएन :9781613014455

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

80 पाठक हैं

ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास

देहाती समाज

1

बाबू वेणी घोषाल ने मुखर्जी बाबू के घर में पैर रखा ही था कि उन्हें एक स्त्री दीख पड़ी, पूजा में निमग्न। उसकी आयु थी, यही आधी के करीब।

वेणी बाबू ने उन्हें देखते ही विस्मय से कहा, 'मौसी, आप हैं! और रमा किधर है?' मौसी ने पूजा में बैठे ही बैठे रसोईघर की ओर संकेत कर दिया। वेणी बाबू ने रसोईघर के पास आ कर रमा से प्रश्न किया-'तुमने निश्चय किया या नहीं, यदि नहीं तो कब करोगी?'

रमा रसोई में व्यस्त थी। कड़ाही को चूल्हे पर से उतार कर नीचे रख कर, वेणी बाबू के प्रश्न के उत्तर में उसने प्रश्न किया-'बड़े भैया, किस संबंध में?

'तारिणी चाचा के श्राद्ध के बारे में। रमेश तो कल आ भी गया, और ऐसा जान पड़ता है कि श्राद्ध भी खूब धूमधाम से करेगा! तुम उसमें भाग लोगी या नहीं?'-वेणी बाबू ने पूछा।

'मैं और जाऊँ तारिणी घोषाल के घर!'-रमा के स्वर में वेणी बाबू के प्रश्न के प्रति विस्मय था और चेहरे पर उनके प्रश्न पर ही प्रश्न का भाव।

'हाँ, जानता तो मैं भी था कि तुम नहीं जाओगी, और चाहे कोई भी जाए! पर वह तो स्वयं सबके घर जा कर बुलावा दे रहा है। आएगा तो तुम्हारे पास भी शायद, क्या उत्तर दोगी उसे?'-वेणी बाबू ने कहा।

आगे....

प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book