व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> हौसला हौसलामधुकांत
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नि:शक्त जीवन पर लघुकथाएं
बातें
आदर्श नगर में सड़क के किनारे मानसिक विकलांग लड़के की लाश पड़ी है। कभी कभी
इस लड़के को घूमते हुए लोगों ने देखा अवश्य है परन्तु कोई जानता नहीं वह
कहां रहता है। सुबह सुबह कई व्यक्तियों ने लाश को देखा भी परन्तु- कौन
बेकार की झंझट मोल ले - सोचकर सब आँखों पर पट्टी बांधकर निकल गए।
कानों कान खबर दूर तक फैलती चली गयी नौ बजे के करीब कुछ लोग उसके आसपास खड़े होते चले गए।
'ठण्ड से मर गया होगा, राती ठण्ड भी किन्ती ठाढी सी ..' सरदार जी ने प्रतिक्रिया व्यक्त की।
'भाई हो सकता है किसी ने मार दिया हो बेचारे को एक ने शंका व्यक्त की।'
पागल तो था ही क्या मालूम घर वालों ने.... कोई फुसफुसाया। 'मियां खुदखुशी भी तो कर सकता है..।,
'कहीं ज्यादा शराब पीकर तो नहीं मर गया........।'
लोग अपनी अपनी बातें कहकर आते जाते रहे परन्तु ग्यारह बजे तक किसी ने लाश की गति करने की नहीं सोची।
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