व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> हौसला हौसलामधुकांत
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नि:शक्त जीवन पर लघुकथाएं
प्रसाद
मां ने उसकी नौकरी के लिए ग्यारह रुपये का प्रसाद बोल रखा था। इसलिए
प्रसाद लेकर वह मंदिर में आ गया। तोंदियल पुजारी ने उसके लिफाफे को आधा
किया तो उसका माथा ठिनका लेकिन भगवान के सामने वह कुछ नहीं बोला।
शेष आधा लिफाफा लेकर जब वह बाहर निकला तो उसने मुख्य द्वार के कोने में एक सूरदास को कराहते हुए सुना।
क्या बात है बाबा - सूरदास की कराहट उसे खींच लायी।
'भूख लगी है बेटा उसकी आवाज भी बहुत कमजोर आ रही थी।' लो बाबा, इसे खा लो - उसने सारा लिफाफा सूरदास को दे दिया। वह जानता था मां इस बात से नाराज होगी लेकिन वह बहुत खुश है। वह समझता है आज भगवान ने उसके प्रसाद को स्वीकार कर लिया है।
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