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संभोग से समाधि की ओर

ओशो

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 97
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


रासो पर एक जवान, स्वस्थ आदमी भीख मांगता हो तो हम उससे कहते हैं कि जवान होकर भीख मांगते हो? और हम कभी नहीं सोचते कि हमारा पूरा मुल्क सारी दुनिया में भीख मांग रहा है! हमे जवान होने का हक रह जाता है?
सड़क पर भीख मांगते आदमी को कोई भी कह देता है कि जवान होकर भीख मांगते हो। हम जानते हैं कि जवान होकर भीख मागना लज्जा से भरी हुई बात है, अपमानजनक है। जवान को पैदा करना चाहिए। हां, बूढ़ा भीख मांगता लग तो हम क्षमा कर सकते हैं अब उससे आशा नहीं पैंदा करने की।
सारी दुनिया में हम भीख मांग रहे हैं! 1947 के बाद अगर हमने कोई महान् कार्य किया है तो वह यही कि हमने सारी दुनिया से भीख मांगने में सफलता पायी है! शर्म भी नहीं आती हमें! दुनिया क्या सोचती होगी कि कितना बूढा देश है, कुछ कर नहीं सकता, सिर्फ भीख मांग सकता है!
लेकिन उन्हें पता नहीं है कि हम पहले से ही पैदा करने की बजाए, भीख मांगने की आदर देते रहे हैं। हिंदुस्तान में जो भीख मांगता है, वह आदृत है। बाह्मण हजार साल तक देश में आश्रित रहे, सिर्फ इसलिए कि वे पैदा नहीं करते और भीख मांगते है।
और हिंदुस्तान ने बड़े-बड़े भिखारी पैदा किए हैं! महापुरुष-बुद्ध स लूका विनोबा तक भीख मांगने वाले महापुरुष! अगर सारा मुल्क भीख मांगने लगा हो तो हर्ज क्या है? हम सब महापुरुष हौ गए डैं। महाpउरुषों का देश हें, सारा देश महापुरुष हो गया है। हम सारी दुनिया मे भीख मांग रहे है। भिक्षा-वत्ति बड़ी धार्मिक वृत्ति है!
पैदा करने में हिंसा भी होती है, पैदा करने में हमें श्रम भी उठाना पड़ता है। और फिर हम पैदा क्यों करें? जब भगवान ने हमें पैदा कर दिया है तो भगवान इंतजाम करे। जिसने चोंच दी है. वह चून देगा। हम अपनी चोच को हिलाते फिरेंगे सारी दुनिया में कि चून दो, क्योंकि हमे पैदा किया है और जो हमें भीख न देंगे, हम गालियां देंगे उन्हें कि तुम भौतिकवादी हो-यू मैटीरियालिस्ट-तुम भौतिकवाद में मरे जा रहे हो, हम आध्यात्मिक लोग है! हम इतने आध्यात्मिक हैं कि हम पैदा भी नहीं करते। हम खाते हैं; खाना आध्यात्मिक काम है, पैदा करना भौतिक काम है! भोगना आध्यात्मिक काम है! श्रम? श्रम आध्यात्मिक लोग कभी नहीं करते, हीन आत्माएं श्रम करती हैं! महात्मा भोग करते हैं। पूरा देश महात्मा हो गया है! 

 1962 में चीन में अकाल की हालत थी। ब्रिटेन के कुछ भले मानुषों ने एक बढ़े जहाज पर बहुत-सा सामान बहुत-सा भोजन, कपड़े, दवाइया भरकर वहां भेजे। हम अगर होते तो चंदन तिलक लगाकर फूल-माला पहनाकर उस जहाज की पूजा करते, लेकिन चीन ने उसको वापस भेज दिया और जहाज पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिख दिया, हम मर जाना पसंद करेंगे, लेकिन भीख-स्वीकार नहीं कर सकते।
शक होता है कि यहां कुछ जवान लोग होंगे!
जवान ही यह हिम्मत कर सकता है कि भूखे मरते देश में और आया हो भोजन बाहर से और लिख दे जहाज पर कि हम भूखों मर सकते हैं लेकिन भीख नहीं मांग सकते।
भूखा मरना इतना बुरा नहीं है, भीख मांगना बहुत बुरा है।
लेकिन जवानी हो तो बुरा लगे, भीतर जवान खून हो तो चोट लग, अपमान हो। हमारा अपमान नहीं होता! हम शांति से अपमान को झेलते चले जाते है ता बड़े तटस्थ हैं, अपमान झेलने में कुछ भी हो जाए हम आंख बंद करके झेल लेते है। यह तो संतोष कै, शांति का लक्षण है कि जो भी हो, उसको झेलते रहो, बैठे रहो चुपचाप और झेलते रहो।

हजारों साल से देश दुःख झेल-झेल कर मर गया तो कैसे हम स्वीकार कर ले कि देश के पास जवान आदमी है, अथवा युवक है। युवक देश के पास नहीं है! और इसलिए पहला काम तथाकथित युवकों के लिए...जो उम्र से युवक दिखायी पड़ते हैं वह यह है कि वह मानसिक यौवन को पैदा करने की देश में चेष्टा करें। वे शरीर के यौवन को मानकर तृप्त न हो जाएं। आत्मिक यौवन, स्प्रीचुअल यंगनेस पैदा करने का एक आंदोलन सारे देश में चलना चाहिए। हम इससे राजी नहीं होंगे कि एक आदमी शकल-सूरत से जवान दिखायी पड़ता हैं तो हम जवान मान लें। हम इसकी फिक्र करेंगे कि हिदुस्तान के पास जवान आत्मा हो।

स्वामी राम भारत के बाहर यात्रा मे पहली दफा गए थे। जिस जहाज पर वे यात्रा कर रहे थे, उस पर एक बूढ़ा जर्मन था, जिसकी उम्र कोई 90 साल होगी। उसके सारे बाल सफेद हो चुके थे, उनकी आंखों में 90 साल की स्मृति ने गहराइयां भर दी थी, उसके चेहरे पर झुर्रियां थी, लंबे अनुभवों की; लेकिन वह जहाज के डैक पर बैठकर चीनी भाषा सीख रहा था!

चीनी भाषा सीखना साधारण बात नहीं है, क्योंकि चीनी भाषा के पास कोई वर्णमाला नहीं है, कोई अ ब स नहीं होता चीनी भाषा के पास। वह पिक्टोरियल लैंग्वेज है, उसके पास तो चित्र हैं। साधारण आदमी को साधारण ज्ञान के लिए कम से कम पांच हजार चित्रों का ज्ञान चाहिए तो एक लाख चित्रों का ज्ञान हो, तब कोई आदमी चीनी भाषा का पंडित हो सकता है। दस-पंद्रह वर्ष का श्रम मांगती है चीनी भाषा। 90 साल का बूढ़ा सुबह से बैठकर सांझ तक चीनी भाषा सीख रहा है।

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