और मैंने ऐसा अनुभव किया है, अगर पुरुष अहिंसा की भी बात करे तो बहुत जल्दी
उसकी अहिंसा में भी हिंसा शुरू हो जाती है। अगर पुरुष सत्याग्रह भी करेगा अगर
पुरुष अनशन भी करेगा तो वह अनशन भी दूसरे की गर्दन दबाने के उपाय की तरह
करेगा। वह भी प्रेशर, वह भी दबाव होगा। वह भी जबर्दस्ती होगी। अगर दस आदमी
अनशन करेंगे किसी काम के लिए, तो वे धमकी दे रहे हैं कि हम मर जाएंगे, हमारी
बात मानो। यह धमकी बहुत हिंसापूर्ण है। यह धमकी अहिंसक नहीं है। यह बहुत
हिंसापूर्ण है। अहिंसा का भी हिंसात्मक उपयोग है यह।
मैंने सुना है, एक युवक, एक युवती से प्रेम करता था। उसने जाकर उसके घर के
सामने अहिंसक अनशन कर दिया, कहा कि मुझसे विवाह करो, अन्यथा मैं भूखा मर
जाऊंगा। घर के लोग घबड़ा गए। क्योंकि अगर वह छुरा लेकर आता तो पुलिस में खबर
कर देते। वह छुरा लेकर नहीं आया। वह धमकी लेकर आया था कि मैं मर जाऊंगा। वह
बोरिया-बिस्तर लगाकर द्वार के सामने बैठ गया। गांव में उसका प्रचार करने वाले
लोग मिल गए।
बेवकूफों का प्रचार करने वालों की कोई कमी नहीं है। उन्होंने जाकर गांवभर में
खबर कर दी, कि एक अहिंसक आंदोलन हो रहा है। एक युवक ने अपने प्राण बाजी पर
लगा दिए हैं। सारे गांव की सहानुभूति उस युवक के साथ होने लगी। जो भी मरता
हो, उसके साथ सहानुभूति स्वाभाविक है। घर के लोग बहुत घबड़ा गए, उन्होंने कहा
हम क्या करें? बड़ी मुसीबत हो गई?
घर के लोगों को किसी परिचित ने सलाह दी कि गांव में एक और भी अहिंसक
सत्याग्रह करने वाला अनुभवी व्यक्ति है। तुम उससे जाकर पूछो। उन्होंने जाकर
सलाह ली। उसने कहा घबराओ मत हर चीज का उपाय है। अहिंसात्मक धमकी का उपाय
अहिंसात्मक ढंग से दिया जा सकता है। मैं रात आ जाऊंगा। घबराओ मत।
वह रात एक बूढ़ी औरत को लेकर पहुंच गया। उस बूढ़ी औरत ने जाकर अपना बिस्तर लगा
दिया और उस युवक से कहा कि मेरे हृदय में तेरे लिए भारी प्रेम का उदय हुआ है।
मैं मर जाऊंगी, अगर तुमने मुझ से विवाह नहीं किया। मैं अनशन शुरू करती हूं।
यह आमरण अनशन है। उस यवक ने सुना और अपना पेटी-बिस्तर लेकर वह रात में भाग
गया! स्वाभाविक है।
इस देश में यह हो रहा है। अहिंसा के नाम यही हो रहा है। हर आदमी अहिंसा के
नाम पर हिंसा की धमकी देता है! आंध्र को अलग करो नहीं तो आमरण अनशन करके मर
जाएंगे। पंजाब को अलग करो नहीं तो यह हो जाएगा। कोई भी आदमी धमकी दे रहा है।
यह बड़ी हैरानी की बात है कि गांधी ने अहिंसा की बात की और अहिंसा का कुल
उपयोग हिंसात्मक ढंग से कर रहे हैं!
किसी की कल्पना भी नहीं हो सकती कि पुरुष का मन ऐसा है कि उसके हाथ में जो भी
हथियार आ जाएगा-चाहे तलवार और चाहे सत्याग्रह-दोनों का उपयोग हिंसात्मक ढंग
से करना।
पुरुष के चित्त की बनावट आक्रामक है, हिंसात्मक है। और अब तक चूंकि सारी
संस्कृति उसके आधार पर निर्मित हुई है। इसलिए सारी संस्कृति हिंसात्मक है।
क्या यह नहीं हो सकता कि स्त्री के हृदय की आवाज को भी इस संस्कृति के
निर्माण में पत्थर बनाया जाए?
लेकिन स्त्री तो चुप! या तो वह गुलाम है, जैसा मैंने कहा या वह पुरुष होने की
दौड़ में है।
पूरब की स्त्री गुलाम है। उसने कभी यह घोषणा ही नहीं की कि मेरे पास भी आत्मा
है। वह चुपचाप पुरुष के पीछे चल पड़ती है।
अगर राम को सीता को फेंक देना है तो सीता की कोई आवाज नहीं। अगर राम कहते हैं
कि मुझे शक है तेरे चरित्र पर तो उसे आग में डाला जा सकता है। यह बड़े मजे की
बात है। यह किसी के खयाल में कभी नहीं आती कि सीता लंका में बंद थी, अकेली,
तो राम को उसके चरित्र पर शक होता है। लेकिन सीता को राम के चरित्र पर शक
नहीं होता! उतने दिन वह अकेले रहे! अग्नि से गुजरना ही है तो राम को आगे और
सीता को पीछे गुजरना चाहिए। जैसा कि हमेशा शादी विवाह में राम आगे रहे, सीता
पीछे रही चक्कर लगाती रही। फिर आग में घुसते वक्त सीता आगे अकेली आगे चली।
राम बाहर खड़े निरीक्षण करते रहे! बड़ी धोखे की बात मालूम पड़ती है!
तीन-चार हजार वर्ष हो गए रामायण को लिखे गए और मैं यह बात पहली दफे कह रहा
हूं। यह बात कभी नहीं उठाई गई कि राम की अग्नि परीक्षा क्यों नहीं होती? नहीं
पुरुष का तो सवाल ही नहीं! यह सब सवाल स्त्री के लिए है!
स्त्री की कोई आत्मा नहीं, उसकी कोई आवाज नहीं। फिर यह अग्नि परीक्षा से
गुजरी हुई स्त्री एक दिन मक्खी की तरह फेंक दी गई तो भी कोई आवाज नहीं! कोई
आवाज नहीं है! और हिंदुस्तान भर की स्त्रियां राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहे
चली जाएंगी! मंदिर में जाकर दीया घुमाती रहेंगी और पूजा-प्रार्थना करती
रहेंगी! राम की पूजा स्त्रियां करती रहेंगी!
स्त्री के पास कोई आत्मा नहीं। कोई सोच-विचार नहीं। सारे हिंदुस्तान की
स्त्रियों को कहना था कि बहिष्कार हो जाए राम का, कितने ही अच्छे आदमी रहे
होंगे। लेकिन बात खत्म हो गई। स्त्रियों के साथ भारी अपमान हो गया। भारी
असम्मान हो गया।
लेकिन राम को स्त्रियां ही जिंदा रखे हैं। राम बहुत प्यारे आदमी हैं। बहुत
अद्भुत आदमी हैं। लेकिन राम को यह खयाल पैदा नहीं होता कि वह स्त्री के साथ
क्या कर रहे हैं! वह हमारी कल्पना नहीं है, वह हमारे खयाल में नहीं है।
युधिष्ठिर जैसा अद्भुत आदमी द्रौपदी को जुए में दांव पर लगा देता है! फिर भी
कोई यह नहीं कहता कि हम कभी युधिष्ठिर को धर्मराज नहीं कहेंगे। नहीं, कोई यह
नहीं कहता! बल्कि कोई कहेगा तो हम कहेंगे कि अधार्मिक आदमी। नास्तिक आदमी है,
इसकी बात मत सुनो।
स्त्री को जुए पर, दांव पर लगाया जा सकता है, क्योंकि भारत में स्त्री संपदा
है, संपत्ति है। हम हमेशा से कहते रहे हैं स्त्री संपत्ति है और इसीलिए तो
पति को स्वामी कहती है। स्वामी का मतलब आप समझते हैं क्या होता है?
अगर हिंदुस्तान की स्त्री में थोड़ी भी अक्ल होगी तो एक-एक शब्द से उसे
'स्वामी' निकाल बाहर कर देना चाहिए। कोई पुरुष कोई सी का स्वामी नहीं हो
सकता। स्वामी का क्या मतलब होता है?
स्त्री दस्तखत कर देती है अपनी चिट्ठी में ''आपकी दासी'' और पतिदेव बहुत
प्रसन्न होकर पढ़ते हैं। बड़े आनंदित होते हैं कि बड़ी प्रेम की बात लिखी है।
लेकिन इसका पता है कि स्वामी और दास में कभी प्रेम नहीं हो सकता। प्रेम की
संभावना समान तल पर हो सकती है। स्वामी और दास में क्या प्रेम हो सकता है?
इसलिए हिंदुस्तान में प्रेम की संभावना ही समाप्त हो गई। हिंदुस्तान में
स्त्री-पुरुष साथ रह रहे हैं और साथ रहने को प्रेम समझ रहे हैं। वह प्रेम
नहीं है। हिदुस्तान में प्रेम का सरासर धोखा है। साथ रहना भर प्रेम नहीं है।
किसी तरह कलह करके 24 घंटे गुजार देना प्रेम नहीं है। जिंदगी गुजार देनी
प्रेम नहीं है।
प्रेम की पुलक और है। प्रेम की प्रार्थना और है। प्रेम की सुगंध और है। प्रेम
का संगीत और है।
लेकिन वह कहीं भी नहीं! असल में गुलाम और दास में, मालिक मे और स्वामी में
कोई प्रेम नहीं हो सकता। लेकिन हमारे खयाल में नहीं है यह बात कि पूरब की
स्त्री नेट्ढ विशेषकर भारत की स्त्री ने अपनी आत्मा का अधिकार ही स्वीकार
नहीं किया है। आत्मा की आवाज भी नहीं दी है। उसने हिम्मत भी नहीं जुटाई कि वह
कह सके 'मैं भी हूं'!
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