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संभोग से समाधि की ओर

ओशो

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 97
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


पहली भूल मनुष्य ने यह की कि भिन्नता को असमानता समझा। डिफरेंस को इनइक्यालिटी समझा। और अब उसी भूल पर दूसरी भूल चल रही है कि हम भिन्नता को कम कर लें। जो काम पुरुष करते हैं वे ही स्त्रियां करें! जो कपड़े वे पहनते हैं वे हम भी पहनें! जिस भाषा का वे उपयोग करते हैं स्त्रियां भी वैसी ही करें! अमेरिका में जिन शब्दों का उपयोग स्त्रियों ने कभी भी नहीं किया था मनुष्य के इतिहास में, कुछ गालियां सिर्फ पुरुष ही देते हैं वह उनका गौरव है। अमेरिका
की लड़कियां उन्हीं गालियों को देने के लिए भी चेष्टा में संलग्न हैं! उन गालियों का भी उपयोग कर रही हैं! क्योंकि पुरुष के साथ समान खड़े हो जाने की बात है। 

और समानता का खयाल ऐसा है कि हम शायद भेद, भिन्नता को किसी तरह से लीप-पोत कर एक-सा कर दें, तो शायद समानता उपलब्ध हो जाए। नहीं समानता उससे उपलब्ध नहीं होगी, क्योंकि असमानता का भी मूल आधार वह नहीं है। असमानता किन्हीं और कारणों से निर्मित हुई है। और जैसे हम कहानी सुनते हैं कि सत्यवान मर गया है, सावित्री उसे दूर से जाकर लौटा लायी है। लेकिन कभी कोई कहानी ऐसी सुनी कि पत्नी मर गयी हो और पति दूर से जाकर लौटा लाया हो। नहीं सुनी है हमने।

स्त्रियां लाखों वर्ष तक इस देश में पुरुषों के ऊपर बर्बाद होती रही हैं। मरकर सती होती रही हैं। कभी ऐसा सुना, कि कोई पुरुष भी किसी स्त्री के लिए सती हो गया हो? क्योंकि सारा नियम सारी व्यवस्था सारा अनशासन परुष ने पैदा किया है। वह स्त्री पर थोपा हुआ है। सारी कहानियां उसने गढ़ी हैं। वह कहानियां गढ़ता है, जिसमें पुरुष को सी बचाकर लौट आती है। और ऐसी कहानी नहीं गढ़ता जिसमें पुरुष सी को बचाकर लौटता हो।
स्त्री गयी कि पुरुष दूसरी स्त्री की खोज में लग जाता है, उसको बचाने का सवाल नहीं है। पुरुष ने अपनी सुविधा के लिए सारा इंतजाम कर लिया है। असल में जिसके पास थोडी-सी भी शक्ति हो, किसी भांति की, वे जो थोड़ी भी निर्बल हों किसी भी भांति से, उनके ऊपर सवार हो ही जाते हैं। मालिक बन ही जाते हैं। गुलामी पैदा हो जाती है।

पुरुष थोड़ा शक्तिशाली है शरीर की दृष्टि से। ऐसे यह शक्तिशाली होना किन्हीं और कारणों से पुरुष को पीछे भी डाल देता है। पुरुष के पास स्ट्रैंर्ग्थ और शक्ति ज्यादा है। लेकिन रेसिस्टेंस उतनी ज्यादा नहीं है, जितनी स्त्री के पास है। और अगर पुरुष और स्त्री दोनों को किसी पीड़ा में सफरिंग में से गुजरना पड़े तो पुरुष जल्दी टूट जाता है। स्त्री ज्यादा देर तक टिकती है। रेसिस्टेसे उसकी ज्यादा है। प्रतिरोधक शक्ति उसकी ज्यादा है। लेकिन सामान्य शक्ति कम है। शायद प्रकृति के लिए यह जरूरी है कि दोनों में यह भेद हो क्योंकि स्त्री कुछ पीड़ाएं झेलती है जो पुरुष अगर एक बार भी झेले, तो फिर सारी पुरुष जाति कभी झेलने को राजी नहीं होगी। नौ महीने तक एक बच्चे को पेट में रखना और उसे जन्म देने की पीड़ा और फिर उसे बड़ा करने की पीड़ा वह कोई पुरुष कभी राजी नहीं होगा। अगर एक रात भी एक छोटे बच्चे के साथ पति को छोड़ दिया जाए तो या तो वह उसकी गर्दन दबाने की सोचेगा या अपनी गर्दन दबाने की सोचेगा।

मैंने सुना है, एक दिन सुबह मास्को की सड़क पर एक आदमी छोटी-सी बच्चों की गाड़ी को धक्का देता हुआ चला जा रहा है। सुबह है लोग घूमने निकले हैं। फूल खिले हैं पक्षी खिले हैं। वह आदमी रास्ते में चलते-चलते बार-बार यह कहता है अब्राहम शांत रह-अब्राहम उसका नाम होगा। पेज नहीं, वह किससे कह रहा है। वह बार-बार कहता है, अब्राहम शांत रह। अब्राहम धीरज रख। बच्चा रो रहा है। वह गाड़ी को धक्के दे रहा है। एक बूढी औरत उसके पास आती है। वह कहती है, क्या बच्चे का नाम अब्राहम है?

वह आदमी कहता है, क्षमा करना, अब्राहम मेरा नाम है। मैं अपने को समझा रहा हूं। शांत रह, धीरज रख, अभी घर आया चला जाता है। इस बच्चे को तो समझाने का सवाल ही नहीं है। अपने को समझा रहा हूं कि किसी तरह दोनों सही सलामत घर पहुंच जाएं।
स्त्री के पास एक प्रतिरोधक शक्ति है, जो प्रकृति ने उसे दी है। एक रेसिस्टेंस की ताकत है। बहुत बड़ी ताकत है। कितनी ही पीड़ा और कितने ही दुःख और कितने ही दमन के बीच वह जिंदा रहती है और मुस्करा भी सकती है। पुरुषों ने जितना दबाया है स्त्री को, अगर स्त्रियों ने उस दमन को, उस पीड़ा को कष्ट से लिया होता तो शायद वे कभी की टूट गयी होतीं। लेकिन वे नहीं टूटी हैं। उनकी मुस्कराहट भी नहीं टूटी है। इतनी लंबी परतंत्रता के बाद भी उसके चेहरे पर कम तनाव है पुरुष की बजाय।

रेसिस्टेंस की, झेलने की, सहने की टालरेंस की, सहिष्णुता की बड़ी शक्ति उसके पास है। लेकिन मस्कुलर, बड़े पत्थर उठाने की, और बड़ी कुल्हाड़ी चलाने की शक्ति पुरुष के पास है। शायद जरूरी है कि पुरुष के पास वैसी शक्ति ज्यादा हो। उसे कुछ काम करने हैं जिंदगी में, वह वैसी शक्ति की मांग करते हैं। स्त्री को जो काम करने हैं वह वैसी शक्ति की मांग करते हैं। और प्रकृति या अगर हम कहें परमात्मा इतनी व्यवस्था देता है जीवन को कि सब तरफ से जो जरूरी है जिसके लिए वह उसको मिल जाता है।

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