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संभोग से समाधि की ओर

ओशो

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 97
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


थोड़ी देर में केशव बहुत मुश्किल में पड़ गए। उनके साथ आए लोग भी मुश्किल में पड़ गए। आखिर केशव ने पूछा, 'आप करते क्या है? क्या मेरी बातों का जवाब नही देंगे? और हाथ जोड़कर आकाश में धन्यवाद किसको देते हैं?'

रामकृष्ण ने कहा, ''मैंने बहुत चमत्कार देखे, यह चमत्कार मैंने नहीं देखा! इतना बुद्धिमान आदमी, इतना विचारशील आदमी धर्म के विरोध में कैसे रह सकता है? जरूर इसमें कोई उसका चमत्कार है। इसलिए मैं आकाश में हाथ उठाकर 'उसे' धन्यवाद देता हूं। और तुमसे मैं कहता हूं, तुम्हें मैं जवाब नही दूंगा, लेकिन जवाब तुम्हें मिल जाएंगे; क्योंकि जिसका चित्त इतना मुक्त होकर सोचता है, वह किसी तरह के बंधन में नहीं रह सकता। वह अधर्म के बंधन में भी नही रह सकता। झूठे धर्म के बंधन तुमने तोड़ डाले हैं अब जल्दी, अधर्म के बेधन भी टूट जाएंगे। क्योंकि, विवेक अंततः सारे बंधन तोड़ देता है। और जहां सारे बंधन टूट जाते हैं वहां जिसका अनुभव होता है, वही धर्म है, वही परमात्मा है। मैं कोई दलील नहीं दूंगा। तुम्हारे पास दलील देनेवाला बहुत अद्भुत मस्तिष्क है। वह खुद ही दलील खोज लेगा।''

केशव सोचते हुए वापस लौटे। और उस रात उन्होंने अपनी डायरी में लिखा, ''आज मेरा एक धार्मिक आदमी से मिलना हो गया है। और शायद उस आदमी ने मेरा रूपांतरण भी शुरू कर दिया है। मैं पहली बार सोचता हुआ लौटा हूं कि उस आदमी ने मुझे कोई उत्तर भी नही दिया है और विचार में भी डाल दिया!''

मनुष्य के पास विवेक है, लेकिन बंधन में है! और जिसका विवेक बंधन में है, वह सत्य तक नहीं पहुंच सकता। हमें सोच लेना है-एक-एक व्यक्ति को सोच लेना है कि हमारा विवेक बंधन में तो नहीं है? अगर मन में कोई भी संप्रदाय है, तो विवेक बंधन में है। अगर मन में कोई भी शास्त्र है, तो विवेक बंधन में है।
अगर मन में कोई भी महात्मा है, तो विवेक बंधन में है। और जब मैं ऐसा कहता हूं तो लोग सोचते हैं शायद मैं महात्माओं और महापुरुषों के विरोध में हूं। मैं किसी के विरोध में क्यों होने लगा? मैं किसी के भी विरोध में नहीं हूं। बल्कि
सारे महापुरुषों का काम ही यही रहा है कि आप बंधे न जाएं। सारे महापुरुषों की आकांक्षा यही रही है कि आप बंध न जाएं। और जिस दिन आपके बंधन गिर जाएंगे, तो-आपको पता चलेगा कि आप भी वही हो जाते हैं जो महापुरुष हो जाते हैं।
महापुरुष मुक्त हो जाता है, और हम अजीब पागल लोग हैं हम उसी मुक्त महापुरुष से बंध जातीं!
समस्त वाद बांध लेते हैं। वाद से छूटे बिना जीवन में क्रांति नहीं हो सकती। लेकिन यह खयाल भी नहीं आता कि हम बंधे हुए लोग हैं।
अगर मैं अभी कहूं कि हिंदू धर्म व्यर्थ है, या मैं कहूं कि इस्लाम व्यर्थ है, या मैं कहूं कि गांधीवाद से छुटकारा जरूरी है, तो आपके मन को चोट लगेगी। और अगर चोट लगे, तो आप समझ लेना कि आप बंधे हुए आदमी हैं।
चोट किसको लगती है? चोट का कारण क्या है? चोट कहां लगती है हमारे भीतर...?
चोट वहीं लगती है, जहां हमारे बंधन हैं। जिस चित्त पर बंधन नहीं है, उसे कोई भी चोट नहीं लगती।
'इस्लाम खतरे में है'-यह सुनकर वे जो इस्लाम के बंधन में बंधे है-खड़े हो जाएंगे युद्ध के लिए संघर्ष के लिए! उनके छुरे बाहर निकल आएंगे! 'हिंदू धर्म खतरे में है'-सुनकर, वे जो हिंदू-धर्म के गुलाम हैं, वे खड़े हो जाएंगे, लड़ने के लिए और अगर कोई गांधी को कह दे, तो जो गांधी के गुलाम हैं वे खड़े हो जाएंगे! लेकिन वह और यह गुलामी किसी के साथ भी नहीं हो सकती है। मेरे साथ भी हो सकती है...।
अभी मुझे पता चला कि बंबई में किसी ने अखबार में मेरे संबंध में कुछ लिखा होगा। तो किन्हीं मेरे दो मित्रों ने उन मित्र को रास्ते में पकड़ लिया और कहा कि अब अगर आगे कुछ लिखा तो तुम्हारी गर्दन दबा देंगे मुझे जिस मित्र ने यह बताया, तो मैंने उन्हें कहा कि जिन्होंने उनको पकड़ कहा कि गर्दन दबा देंगे-वे मेरे गुलाम हो गए। वे मुझसे बंध गए।
...मैं अपने से नहीं बांध लेना चाहता हूं किसी को। मैं चाहता हूं कि प्रत्येक व्यक्ति किसी से बंधा हुआ न रह जाए। एक ऐसी चित्त की दशा हमारी हो कि हम किसी से बंधे हुए न हों। उसी हालत में क्रांति तत्काल होनी शुरू हो जाती है। एक एक्सप्लोजन, एक विस्फोट हो जाता है। जो आदमी किसी से भी बंधा हुआ नहीं है, उसकी आत्मा पहली दफा अपने पंख खोल लेती है, और खुले आकाश में उड़ने के लिए तैयार हो जाती है। 

हमारे पैर गड़े हैं जमीन में, और इस पर हम पूछते हैं कि चित्त दुःखी है, अशांत है, परेशान है! आनंद कैसे मिले? परमात्मा कैसे मिले? सत्य कैसे मिले? मोक्ष कैसे मिले? निर्वाण कैसे मिले?
कहीं आकाश में नहीं है निर्वाण। कहीं दूर सात आसमानों के पार नहीं है मोक्ष। यही है, और अभी है। और उस आदमी को उपलब्ध हो जाता है, जो कही भी बँधा हुआ नही है। जिसकी कोई क्लिंगिग नहीं है। जिसके हाथ, किसी दूसो के हाथ को नहीं पकड़ हुए है। वह अकेला है, और अकेला खड़ा है। और जिसने इतना साहस और इतनी हिम्मत जुटा ली है कि अब किसी का अनुयायी नही है, किसी के पीछे चलनेवाला नहीं है, किसी का अनुकरण करनेवाला नही है। अब वह किसी का मानसिक गुलाम नही है, किसी का मेंटल स्लेव नहीं है।

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