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संभोग से समाधि की ओर...
सुबह मैंने एक सूत्र कहा है कि 'सिद्धांतो से मुक्त हो जाएं', क्योंकि जो
सिद्धांतों से बंधा है, वह जीवन क्रांति के रास्ते पर नहीं जा पाएगा।
दूसरा सूत्र कहता हूं'भीड़ से मुक्त हो जाना है', क्योंकि जो भीड़ का गुलाम है,
वह कभी भी जीवन क्रांति के रास्ते से नहीं गुजर सकता।
आने वाले दिनों में कुछ और सूत्र भी कहूंगा, लेकिन उन सूत्रों को सुनने भर से
कुछ होने वाला नहीं है। थोड़ा-सा भी प्रयोग करेंगे, तो द्वार खुलेगा; कुछ
दिखायी पड़ना शुरू होगा।
धर्म एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। धर्म एक जीवित विज्ञान है।
जो प्रयोग करता है, वह रूपांतरित हो जाता है और उपलब्ध होता है वह सब, जिसे
पाए बिना हम व्यर्थ जीते हैं और व्यर्थ मर जाते है; और जिसे पा लेने पर जीवन
एक धन्यता हो जाती है; और जिसे पा लेने पर जीवन कृतार्थ हो जाता है; और जिसे
पा लेने पर सारा जगत परमात्मा में रूपांतरित हो जाता है।
लेकिन जिस दिन भीतर दिखायी पड़ता है कि भीतर परमात्मा है, उसी दिन यह भ्रम भी
मिट जाता है कि बाहर कोई और है। बस फिर तो सिर्फ 'वही' रह जाता है। जो भीतर
दिखायी पडता है, वही बाहर भी प्रमाणित हो जाता है।
और जगत के मूल सत्य को जान लेना, जीवन को अनुभव कर लेना है। और जीवन को अनुभव
कर लेना, मृत्यु के ऊपर उठ जाना है। फिर कोई मृत्यु नहीं है! जीवन की कोई
मृत्यु नहीं है।
जो मरता है, वह समाज के द्वारा दिया गया झूठा व्यक्तित्व है। जो मरता है, वह
प्रकृति के द्वारा दिया गया झूठा शरीर है।
जो नहीं मरता है, वह जीवन है। लेकिन उसका हमें कोई पता नहीं है!
पहले समाज से हटें-समाज के झूठे व्यक्तित्व से हटें।
फिर प्रकृति के दिए गए व्यक्तित्व से हटें। उसकी कल मैं बात करूंगा कि
प्रकृति के दिए गए शरीर से कैसे हटें; और फिर हम वहां पहुंच सकतै है जहा जीवन
है।
मेरी बातों को इतने प्रेम और शांति से सुना, उससे बहुत अनुगृहीत हूं। और अत
मैं सबके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हूं, मेरा प्रणाम स्वीकार करें।
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