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संभोग से समाधि की ओर

ओशो

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 97
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


17


दमन से मुक्ति

मेरे प्रिय आत्मन,
'जीवन क्रांति के सूत्र'-इस परिचर्चा के तीसरे सूत्र पर आज चर्चा करनी है। पहला सूत्र था : सिद्धांत शास्त्र और वाद से मुक्ति।
दूसरा सूत्र था भीड़ से, समाज से-दूसरों से मुक्ति।
और आज तीसरे सूत्र पर चर्चा करनी है। इस तीसरे सूत्र को समझने के लिए मन का एक अद्भुत राज समझ लेना आवश्यक है। मन की वह बड़ी अद्भुत प्रक्रिया है, जो साधारणतः पहचान में नहीं आती।
और वह प्रक्रिया यह है कि मन को जिस ओर से बचाने की कोशिश की जाए मन उसी ओर जाना शुरू हो जाता है; जहां से मन को हटाया जाए मन वहीं पहुंच जाता है; जिस तरफ से पीठ की जाए, मन उसी ओर उपस्थित हो जाता है।
'निषेध' मन के लिए निमंत्रण है, 'विरोध' मन के लिए बुलावा है।
और मनुष्य जाति इस मन को बिना समझे आज तक जीने की कोशिश करती रही है!
फ्रायड ने अपनी जीवन कथा में एक छोटा-सा उल्लेख किया है। उसने लिखा है कि एक बार वह बगीचे में अपनी पत्नी और छोटे बच्चे के साथ घूमने गया। देर तक वह पत्नी से बातचीत करता रहा टहलता रहा। फिर जब सांझ होने
लगी और बगीचे के द्वार बंद होने का समय करीब हुआ तो फ्रायड की पत्नी को खयाल आया कि 'उसका बेटा न मालूम कहां छूट गया है? इतने बड़े बगीचे में वह पता नहीं कहां होगा? द्वार बंद होने के करीब हैं उसे कहां खोजूं?' फ्रायड की पत्नी चिंतित हो गयी, घबड़ा गयी।
फ्रायड ने कहा, ''घबड़ाओ मत! एक प्रश्न मैं पूछता हूं, तुमने उसे कहीं जाने से मना तो नहीं किया? अगर मना किया है तो सौ में निन्यानबे मौके तुम्हारे बेटे के उसी जगह होने के हैं जहां जाने से तुमने उसे मना किया है।
उसकी पत्नी ने कहा, ''मना तो किया था कि फव्वारे पर मत पहुंच जाना।''
फ्रायड ने कहा, ''अगर तुम्हारे बेटे में थोड़ी सी भी बुद्धि है, तो वह फव्वारे पर ही मिलेगा। वह वहीं होगा। क्योंकि कई बेटे ऐसे भी होते हैं जिनमें बुद्धि नही होती। उनका हिसाब रखना फिजूल है।''
फ्रायड की पत्नी बहुत हैरान हो गयी। वे गए दोनों भागे हुए फव्वारे की ओर। उनका बेटा फव्वारे पर पानी में पैर लटकाए बैठा पानी से खिलवाड़ कर रहा था। फ्रायड की पत्नी ने कहा, ''बड़ा आश्चर्य! तुमने कैसे पता लगा लिया कि हमारा बेटा यहां होगा?''
फ्रायड ने कहा, ''आश्चर्य इसमें कुछ भी नहीं है। मन को जहां जाने से रोका जाए मन वहीं जाने के लिए आकर्षित होता है। जहां के लिए कहा जाए मत जाना वहां, एक छिपा हुआ रहस्य शुरू हो जाता है कि मन वहीं जाने को तत्पर हो जाता है।''
फ्रायड ने कहा, यह तो आश्चर्य नही है कि मैंने तुम्हारे बेटे का पता लगा लिया, आश्चर्य यह है कि मनुष्य-जाति इस छोटे-से सूत्र का पता अब तक नहीं लगा पायी। और इस छोटे-से सूत्र को बिना जाने जीवन का कोई रहस्य कभी उद्घाटित नहीं हो पाता। इस छोटे-से सूत्र का पता न होने के कारण मनुष्य-जाति ने अपना सारा धर्म, सारी नीति, सारे समाज की व्यवस्था सप्रेशन पर, दमन पर खड़ी की हुई है।
मनुष्य का जो व्यक्तित्व हमने खड़ा किया है, वह दमन पर खड़ा है, दमन उसकी नींव है।
और दमन पर खड़ा हुआ आदमी लाख उपाय करे, जीवन की ऊर्जा का साक्षात्कार उसे कभी नहीं हो सकता है। क्योंकि जिस-जिस का उसने दमन किया है, मन में वह उसी से उलझा-उलझा नष्ट हो जाता है।
थोड़ा-सा प्रयोग करें और पता चल जाएगा। किसी बात से मन को हटाने की कोशिश करें और पाएंगे मन उसी बात के आसपास घूमने लगा है। किसी बात को भूलने की कोशिश करें, तो भूलने का वही कोशिश उस बात को स्मरण करने का आधार बन जाती है। किसी बात को, किसी विचार को, किसी स्मृति को, किसी इमेज को, किसी प्रतिमा को मन से निकालने की कोशिश करें, और मन उसी को पकड़ लेता है।
भीतर, मन में लड़े और आप पाएंगे कि जिससे आप लड़ेंगे, उसी से हार खाएंगे; जिससे भागेंगे, वही पीछा करेगा। जैसै छाया पीछा कर रही है। जितनी तेजी से भागते हैं, छाया उतनी ही तेजी से पीछा करती है।

मन को हमने जहां-जहाँ से भगाया है, मन वहीं-वहीं हमें ले गया है; जहां-जहां जाने से हमने उसे इंकार किया है, जहां-जहां जाने से हमने द्वारबद किए हैं, मन वही-वहीं हमें ले गया है।
क्रोध से लड़े-और मन क्रोध के पास ही खड़ा हो जाएगा; हिंसा से लड़े-और मन हिंसक हो जाएगा। मोह से लड़े-और मन मोह ग्रस्त हो जाएगा। लोभ से लड़े-और मन लोभ में गिर जाएगा। धन से लड़े-और मन धन के प्रति हो पागल हो उठेगा। काम से लड़नेवाला मन, सेक्स से लडने वाला मन, सेक्स में चला जाएगा। जिससे लड़ेंगे, मन वही हो जाएगा। यह बड़ी अद्भुत बात है। जिसको दुश्मन बनाएंगे, मन पर उस दुश्मन की ही प्रतिच्छवि अंकित हो जाएगी।
मित्रों को मन भूल जाता है, शत्रुओं को मन कभी नहीं भूल पाता।
लेकिन यह तथ्य है कि जिससे हम लड़े, मन उसके साथ ढल जाए? लेकिन उसकी शक्ल बदल ले, नाम बदल ले।
मैंने सुना है, एक गांव में एक बहुत क्रोधी आदमी रहता था। वह इतना क्रोधी था कि एक बार उसने अपनी पत्नी को धक्का देकर कुएं में गिरा दिया था। जब उसकी पत्नी मर गयी और उसकी लाश कुएं से निकाली गयी तो वह क्रोधी आदमी जैसे नींद से जाग गया। उसे लगा कि उसने जिंदगी में सिवाय क्रोध के और कुछ भी नहीं किया। इस दुर्घटना से वह एकदम सचेत हों गया। उसे बहुत पश्चाताप हुआ।

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