और देवताओं से वस्त्र लानेवाले...और देवताओं की खबर लाने वाले...देवताओं तक
पहुंचाने वाले लोग-सब बेईमान होते हैं।...इधर आदमी तक पहुंचना है, देवताओं तक
पहुंचना आसान है। आदमी को समझना मुश्किल, और स्वर्ग के नक्शे बनाए हुए बैठे
है! बड़ौदा की ज्योगरफी का जिनको पता नहीं वे स्वर्ग और नरक के नक्शे बनाए
बैठे हैं!
...उस आदमी ने कहा, ''महाराज, देवताओं ने चलते वक्त कहा था, पहली दफे पृथ्वी
पर जा रहे हैं ये वस्त्र, इनकी शोभा-यात्रा नगर में निकलनी बहुत जरूरी है। रथ
तैयार है। अब आप आकर रथ पर सवार हो जाइए। लाखों-लाखों जन भीड़ लगाए हुए है।
उनकी आंखें तरस रही है इन वस्रों को देखने के लिए।''
राजा ने कहा, ''क्या कहा? अब तक महल के भीतर थे, जहां अपने ही लोग थे। अब,
महल के बाहर, सड़कों पर भी जाना होगा?''
लेकिन, उस आदमी ने धीरे से कहा, ''घबड़ाइए मत, जिस तरकीब से सबको वस्त्र
दिखायी पड़ रहे हैं उसी तरकीब से वहां भी सबको दिखायी पड़ेगे। आपके रथ के आगे
यह डुगडुगी पीटी जाएगी सारे नगर में कि यह वस उसी को दिखायी पड़ेंगे, जो अपने
बाप से पैदा हुआ है। आप घबडाइए मत। अब जो हो गया, हो गया। अब चलिए।''
राजा समझ तो गया कि वह नंगा है और किसी को वस्त्र दिखायी नहीं पड़ रहे हैं
लेकिन अब कोई भी अर्थ न था। जाकर बैठ गया वह सिंहासन पर, रथ पर...।
स्वर्ण-सिंहासन रथ पर लगा था। नंगा राजा बैठा था स्वर्ण-सिंहासन पर..।
स्वर्ण-सिंहासनों पर नंगे लोग ही बैठते हैं।
...शोभा-यात्रा निकली। लाखों लोगों की भीड़ थी। और नगर के लाखों लोगों को एकदम
से वस्त्र दिखायी पड़ने लगे थे...!
वही लोग जो महल के भीतर थे, वही महल के बाहर भी हैं। वही आदमी, वही भीड़वाला
आदमी।
...सब वस्त्रों की प्रशंसा करने लगे। कौन झंझट में पड़े। जब सारी भीड़ को
दिखायी पड़ता हो तो व्यक्ति अपने को कैसे इंकार करे; कैसे कहे कि मुझे दिखायी
नहीं पड़ता। इतना बल जुटाने के लिए बड़ी आत्मा चाहिए इतना बल जुटाने के लिए बड़ा
धार्मिक व्यक्ति चाहिए इतना बल जुटाने के लिए परमात्मा की आवाज चाहिए। कौन
इतना बल जुटाए? इतनी बड़ी भीड़! फिर मन में यह प्रश्न आता है कि जब इतने लोग
कहते हैं तो ठीक ही कहते होंगे। इतने लोग गलत क्यों कहेंगे? लेकिन, कोई भी यह
नही सोचता कि ये इतने लोग भी इकट्ठे नही हैं, ये भी एक-एक आदमी हैं, अपने
लिए-'मेरे-ही-जैसा'। जैसा मैं कमजोर हूं, वैसा ही यह भी कमजोर है। यह भी भीड़
से डर रहा है, मैं भी भीड से डरता हूं...।
जिससे हम डर रहे हैं वह कहीं है ही नहीं। एक-एक आदमी का समूह खड़ा हुआ है, और
सब भीड़ से डर रहे हैं।
...लोग अपने बच्चों को घर ही छोड़ आए थे; लाए नहीं थे भीड़ में। क्योंकि बच्चे
का क्या भरोसा कोई बच्चा कह दे कि राजा नंगा है...तो?
बच्चों का क्या विश्वास? बच्चों को बिगाड़ने में वक्त लग जाता है। स्कूल,
कॉलेज, युनिवर्सिटी सब जुटे हुए हैं फिर भी मुश्किल से बिगाड़ पाते हैं। एकदम
आसान नहीं बिगाड़ देना।
...छोटे-छोटे बच्चों को अपने साथ कोई नहीं लाया था। लेकिन कुछ बच्चे जिद्दी
होते हैं। और कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जिनकी माताओं की वजह से पिताओं को उनसे
डरना पड़ता है। उनको लाना पड़ा। वे कंधे पर सवार होकर आ गए। एक बच्चे ने जोर से
कहा, ''अरे! राजा नंगा है!''
उसके बाप ने कहा, ''चुप नादान! अभी तुझे अनुभव नहीं हैं, इसलिए तुझे नंगा
दिखायी पड़ता है। ये बातें बड़े गहरे अनुभव की हैं। अनुभवियों को दिखायी पड़ती
हैं। जव उम्र तेरी बढ़ेगी, तो तुझको भी दिखायी पड़ने लगेंगी। यह उम्र से आता है
ज्ञान। उम्र के बिना दुनिया में कोई ज्ञान कभी नहीं आता...।''
उम्र के भरोसे मत बैठे रहना। उम्र से बेईमानी आती है, चालाकी आती है,
कनिंगनेस आती है; उम्र से ज्ञान कभी नहीं होता। लेकिन सभी चालाक लोग यही कहते
हैं कि उम्र से ज्ञान होता है।
...उस बच्चे ने पूछा, 'आपको दिखायी पड़ रहे हैं वस्त्र?'
''हां मुझे दिखायी पड़ रहे हैं", उसके पिता ने कहा। ''बिल्कुल दिखायी पड़ रहे
हैं। हम अपने ही बाप से पैदा हुए हैं। ऐसा कैसे हो सकता है कि हमको दिखायी न
पड़े। और, तुम अभी बच्चे हो-नासमझ हो, भोले हो; अभी तुम्हें समझ कहां है!''
जिस बच्चे को सत्य दिखायी पड़ा था उसे भीड़ के भय का कोई पता नहीं था; इसीलिए
दिखायी पड़ा था। वह भी बड़ा होगा, तो भीड़ से भयभीत हो जाएगा। तब उसे भी वस
दिखायी पड़ने लग जाएंगे। यह भीड़ डराए हुए है चारों तरफ से एक-एक आदमी को।
इसलिए जीसस ने कहा है :
...एक बाजार में वे खड़े थे। कुछ लोग उनसे पूछने लगे कि तुम्हारे स्वर्ग के
राज्य में, तुम्हारे परमात्मा के दर्शन को कौन उपलब्ध हो सकता है? तो जीसस ने
चारों तरफ नजर दौड़ायी, और एक छोटे-से बच्चे को उठाकर ऊपर कर लिया और कहा कि
'जो इस बच्चे की तरह है।'
क्या मतलब रहा होगा...? क्या कद छोटा होने से ईश्वर के राज्य में चले
जाइएगा...? कि उम्र कम होगी तो ईश्वर के राज्य में चले जाइएगा...! या बच्चे
बन जाएंगे, तब ईश्वर के राज्य में चले जाएंगे...?
जो बच्चों की तरह है, इसका मतलब है, जो भीड़ से भयभीत नहीं हैं। जो शुद्ध हैं
और साफ हैं। जो दिखता है, वही कहते हैं कि दिखता है। जो नहीं दिखता, कहते हैं
कि नहीं दिखता। जो झूठ को मान लेने को राजी नहीं हैं। जो बच्चों की तरह हो गए
हैं।
बच्चे नहीं हो गए हैं बच्चों की तरह हो गए हैं।
बच्चों की तरह होने का क्या मतलब है...?
बच्चे अकेले हैं बच्चे इंडिविजुअल हैं। बच्चों को भीड़ से कोई मेतलब नहीं है।
अभी भीड़ की उन्हें फिक्र नहीं है। अभी भीड़ का उन्हें पता भी नहीं है कि भीड़
भी है।
भीड़ बड़ी अद्भुत चीज है। एक अनजानी ताकत जकड़े हुए र्ह आदमी को चारों तरफ से।
इसलिए दूसरा सूत्र मैंने कहा, अगर तुम्हें जीवन के सत्य की तरफ जाना हो, तो
भीड़ की खूंटी से मुक्त हो जाना।
इसका यह मतलब नहीं कि आप भीड़ से भाग जाएं। भागेंगे कहां, भीड़ सब जगह है। कहां
भागेंगे? जहां जाएंगे, वहीं भीड़ है। और अभी तो थोड़ी-बहुत पहाड़ियां बच भी गयी
हैं। जहां भागकर जा भी सकते हैं लेकिन कुछ ही दिनों में पहाड़ियां भी नहीं
बचेंगी।
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