वैज्ञानिक कहते हैं कि सौ वर्षों में अगर भारत जैसे देश बच्चों को पैदा करने
के अपने महान् कार्य में संलग्न रहे, तो दुनिया में कुहनी हिलाने की जगह भी
नहीं रह जानेवाली है। तब हमें सभा करने की जरूरत नहीं रहेगी। कहीं भी खड़े हो
जाइए और सभा हो जाएगी।
कहां भागिएगा भीड़ से...? जंगलों में, पहाड़ों में कोई खटपट नहीं है...? भीड़
वहां भी बहुत सूक्ष्म रूप में पीछा करती है।
एक आदमी साध हो जाता है, भाग जाता है जंगल में। जंगल में बैठा है, उससे
पूछिए, 'आप कौँन हैं?' वह कहता है, 'मैं हिंदू हूं!'
भीड़ पीछा कर रही है। अभी भी तुम अपने को हिंदू कहते हो! अभी तुम आदमी नहीं
हुए? आदमी होना बहुत मुश्किल है हिंदू होना बहुत आसान है। एक आदमी साधु हो
जाता है, वह कहता है, हिंदू होना बहुत आसान है।
एक आदमी साधु हो जाता है, वह कहता है, 'मैं जैन हूँ!' अब तुमने समाज
को छोड़ दिया है, तो अब तुम जैन कैसे हो? ये जैन-वैन होना तो समाज ने सिखाया
था।
साधु भी-हिंदू जैन और मुसलमान हैं तो फिर असाधुओं का क्या हिसाब रखना। गांधी
जैसे अच्छे आदमी भी इस भ्रम से मुक्त नहीं हो सके कि मैं हिदू हूं। चिल्लाए
चले जाते हैं कि मैं हिंदू हूं। तो साधारण लोगों की क्या हैसियत हे। गांधी
जैसा अच्छा आदमी भी हिम्मत नहीं जुटा पाता कि कहे कि मैं आदमी हूं बस; और कोई
विशेषण नहीं लगाऊंगा। अगर अकेले गांधी ने भी हिम्मत जुटा ली होती, और यह कहा
होता कि मैं सिर्फ आदमी हूं तो जिन्ना की जान निकल गयी होती। लेकिन गांधी के
हिंदू होने से जिन्ना की जान न निकलने दी।
हिंदुस्तान का बंटवारा हुआ गाँधी के हिंदू होने की वजह से; अन्यथा हिंदुस्तान
कभी नहीं बंटता। लेकिन ख्याल में नहीं आता हमें यह, कि इतनी छोटी-सी बात
कितने बड़े परिणाम ला सकती है। गांधी का हिदू होना संदिग्ध करता रहा मुसलमान
के मन को। गांधी का आश्रम, गांधी के हिंदू ढंग, गांधी की प्रार्थना, पूजा
पत्र-सब यह वहम पैदा करते रहे कि वे हिंदू महात्मा हैं।
और हिंदू महात्मा से, हिंदू भीड़ से सावधान होना जरूरी है मुसलमान को। दूसरी
भीड़ सदा सावधान होती है; क्योंकि एक भीड़ से दूसरी भीड़ को डर है; एक दुकान को
दूसरी दुकान से डर है।
जिन्ना का मुसलमान होना खत्म हो जाता, पर गांधी का हिंदू होना ही खत्म नहीं
हो सका। और जिन्ना से हम आशा नहीं करते हैं कि उसका खत्म हो, वह आदमी साधारण
है; गाधी से हम आशा कर सकते हैं। लेकिन गांधी का ही खत्म नहीं हुआ तो जिन्ना
का कैसे खत्म होगा!
भीड़ पीछा करती है; भीड़ बहुत सचेत बहुत सूक्ष्म रास्ते से पीछा करती है...?
बर्टेड रसेल ने कहीं कहा है कि मैंने बहुत पढ़-लिखकर, बहुत सोच समझकर पाया कि
बुद्ध से ज्यादा अद्भुत आदमी दूसरा नहीं हुआ पृथ्वी पर। लेकिन जब भी मैं यह
सोचता हूं, कि बुद्ध सबसे महान् हैं तभी मेरे भीतर एक बेचैनी होने लगती है और
कोई कहता है कि नहीं बुद्ध क्राइस्ट से ज्यादा महान् नही हो सकते!
...भीड़ पीछा करती है। वह भातर बैठी है। वह बचपन से जो सिखा देती है, जो
कंडीशनिग कर देती है, जैसा चित्त को संस्कारित करती है, फिर वह जावन भर पीछा
करता है; मरते दम तक पीछा करता है।
एक सज्जन हैं। बहुत विचारशील हैं। उनका नाम नहीं लूंगा; क्योंकि किसी का नाम
लेना इस युग में ऐसा खतरनाक है, जिसका कोई हिसाब नहीं। किसी का नाम नहीं लिया
जा सकता। अंधेरे में बात करनी पड़ती है। वे बड़े विचारक हैं।
वे मुझसे कहते थे, ''मेरा सब छूट गया; जप तप पूजा-पाठ-मैंने सब छोड़ दिया है।
मैं सबसे मुक्त हो गया हूं।''
मैंने कहा, ''इतना आसान नहीं है मामला। यह मुक्त हो पाना इतना आसान नहीं है।
क्योंकि जब आप कहते हैं कि मैं मुक्त हो गया हूं, तभी मैं आपकी आंख में
झांकता हूं और मुझे लगता है कि आप मुक्त नहीं हुए। अगर मुक्त हो गए होते
तो-'मुक्त हो गया हूं यह खयाल भी छूट गया होता।'
उन्होंने कहा, ''नहीं नहीं मैं मुक्त हो गया हूं।'' मैंने कहा, ''जितने जोर
से आप कहेंगे मुझे, मेरा शक उतना ही बढ़ता जाएगा। वक्त आने दीजिए पता चल
जाएगा।''
फिर जब उनको हार्ट-अटैक हुआ तो मैं उन्हें देखने गया। आख बंद किए वे कुछ
बेहोश से पड़े थे और राम-राम राम-राम का जाप चल रहा था। मैंने उनको हिलाया और
कहा, ''ये क्या कर रहे हैं?''
उन्होंने कहा, ''मैं बड़ी हैरानी में पड़ गया हूं। जिस क्षण हार्ट-अटैक हुआ ऐसा
लगा कि मर जाऊंगा और जिस पूजा-पाठ को सदा के लिए छोड़ दिया था वह एकदम से चलना
शुरू हो गया! अब मैं रोकना भी चाहता हूं तो नहीं रुकता है; भीतर चले ही जा
रहा है जोर से-राम-राम राम-राम। मैं सोचता था सब छूट गया है। लेकिन शायद आप
ठीक कहते थे, 'छोड़ना बहुत मुश्किल है।'
बहुत गहरे में जड़ें रहती हैं भीड़ की। वह जो सीखा देती है, वह भीतर बैठा रहता
है। वह राम-राम का जाप भीतर गहरे से गहरे चला गया था।
अब गांधी जी कितना कहते थे-'अल्लाह ईश्वर तेरे नाम।' लेकिन जब गोली लगी, तब
अल्लाह का नाम याद नहीं आया। तब 'हे राम'! ही याद आया, अल्लाह का नाम याद
नहीं आया! गोली लगी तो याद आया-'हे राम!'
वह हिंदू भीतर बैठा है। वह राम आत्मा में भीतर गहरे से गहरा घुस गया है। वह
जब गोली लगी, सब भूल गया है 'अल्लाह ईश्वर तेरे नाम।' निकला 'हे राम!' 'हे
अल्लाह!' निकलता तो शायद गांधी..लेकिन बड़ा मुश्किल था नहीं हो सका। वह असंभव
था वह हो नहीं सका।
गहरे में भीड़ घुस जाती है आदमी के। भीड़ से बचने का मतलब यह नहीं होता है कि
जंगल चले जाना। भीड़ से बचने का मतलब है-अपने भीतर खोजना। और जहां-जहां भीड़ के
चिह्न मिले उन्हें अलग करते जाना और कोशिश जारी रखना कि व्यक्ति का आविर्भाव
हो जाए। भीड़ से मुक्त होकर व्यक्ति ऊपर उठ जाए भीड़ छूट जाए भीतर अंतस में
चित्त में।
जो आदमी अपने चित्त की वृत्तियों को दबाता है, वह जिन वृत्तियों को दबाता
है, उन्हीं से बंध जाता है। जिससे बंधना हो, उसी से लड़ना शुरूकर देना। दोस्त
से उतना गहरा बंधन नहीं होता है, जितना दुश्मन से होता है, दोस्त की तो
कभी-कभी याद आती है; सच तो यह है, याद कभी आती ही नहीं। जब मिलता है, तभी
कहते हैं कि बड़ी याद आती है। लेकिन, दुश्मन की चौबीस घंटे याद बनी रहती है।
रात सो जाओ, तब भी वह साथ सोता है। सुबह उठो, तो उठने के साथ उठता है। जितनी
गहरी दुश्मनी हो, उतना गहरा साथ हो जाता है।
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