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उपन्यास >> कुसम कुमारी

कुसम कुमारी

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :183
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9703
आईएसबीएन :9781613011690

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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी

बीरसेन ने क्रोध में आकर उसे एक लात मारी साथ ही उसने भी म्यान से तलवार निकाल ली और बीरसेन पर वार किया। बीरसेन ने फुर्ती से बगल में हटकर अपने को बचा लिया और एक हाथ तलवार का ऐसा लगाया कि उसकी दाहिनी कलाई जिसमें तलवार थी कट कर जमीन पर गिर पड़ी और वह आदमी हक्का-बक्का होकर सामने खड़ा रह गया। बीरसेन ने कहा, ‘‘अब भी चलेगा या इसी तरह अपनी जान देगा!!’’

मगर वह आदमी भी बड़ा ही साहसी था। कलाई कट जाने से भी वह सुस्त न हुआ बल्कि उसने अपने कमर से एक रूमाल निकाल कर कटी हुई कलाई के ऊपर लपेटा और बीरसेन के आगे-आगे किले की तरफ रवाना हुआ। थोड़ी दूर चलकर बीरसेन ने उससे कहा, ‘‘इसमें कोई सन्देह नहीं कि महारानी के गायब होने का हाल तू जानता है, बल्कि उस बुरे काम में तू भी साथी रहा है। यदि इसी जगह उसका पूरा-पूरा हाल बता दे, तो मैं तुझे छोड़ दूंगा, नहीं तो समझ रख कि थोड़ी ही देर में तेरा सर धड़ से अलग कर दिया जाएगा।

आदमी–आप यदि प्रतिज्ञा करें कि महारानी का पता बता देने और हर तरह की मदद देने पर आप मेरी जान छोड़ देंगे तो मैं इसमें जो कुछ भेद है आपसे कहूं और महारानी का ठीक-ठीक पता भी आपको बता दूं क्योंकि मुझसे भूल तो हो ही चुकी है और यह भी निश्चय हो गया कि अब किसी तरह जान नहीं बचेगी। हां, इसके साथ ही आपको यह प्रतिज्ञा भी करनी होगी कि होगी कि आप लोग मेरा नाम और पता न पूछेंगे।

बीरसेन–यद्यपि तू इस योग्य नहीं है तथापि मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि महारानी यदि जीती-जागती मिल जाएंगी तो तेरी जान छोड़ दूंगा, मगर इस बात को भी खूब याद रखिए कि अगर तू धोखा देने का उद्योग करेगा तो तेरी जान बहुत बुरी तरह से ली जाएगी। और मैं यह प्रतिज्ञा करता हूं कि तेरा नाम और पता जानने के लिए जबरदस्ती न की जाएगी।

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