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उपन्यास >> कुसम कुमारी

कुसम कुमारी

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :183
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9703
आईएसबीएन :9781613011690

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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी

आदमी–आप क्षत्रिय हैं, आपकी प्रतिज्ञा कभी झूठी नहीं हो सकती न मालूम कौन से क्रूर ग्रह आ पड़े थे कि हम लोग कालिन्दी के धोखे में आ गए और इतना बड़ा अनर्थ कर बैठे। हाय निःसन्देह वह काली नागिन है। खैर, जो होना था हो गया, अब विलम्ब करना उचित नहीं है। अभी तक महारानी बहुत दूर न गई होगी क्योंकि जो लोग उन्हें ले गए हैं थोड़ी ही दूर पर एक नियत स्थान पर ठहर कर मेरे और कालिन्दी के आने की राह देखते होंगे। अब खटका केवल दो बातों का है, एक तो यह कि कालिन्दी जो सब बखेड़े की जड़ है और जिसे आपने छोड़ दिया है वहां पहुंचकर लोगों को बहका न दे या इस बात की खबर कहीं बालेसिंह को न पहुंच जाए जिसकी फौज किले के सामने वाले मैदान में पड़ी हुई है। साथ ही इसके इतना और भी कहे देता हूं कि केवल आप ही अकेले चलकर महारानी को उन दुष्टों के हाथ से नहीं छुड़ा सकते क्योंकि वे लोग लड़ने और जान देने के लिए तैयार हो जाएंगे।

इतना ही कहते-कहते वह आदमी सुस्त होकर जमीन पर बैठ गया क्योंकि उसकी कटी हुई कलाई में जख्म ठण्डा हो जाने के कारण दर्द ज्यादे हो गया था।

इस समय बीरसेन तरदुद्द के मारे किले की तरफ इस तरह देखने लगे मानो किसी के आने की उम्मीद हो।

अब आसमान पर चांद अच्छी तरह निकल आया था जिसकी रोशनी में किले की तरफ से बहुत से आदमियों को अपनी तरफ आते हुए बीरसेन ने देखा और बोले–‘‘लो रनबीरसिंह भी आ पहुंचे!’’

आदमी–(खड़ा होकर और किले की तरफ देखकर) अब आप अपना काम बखूबी कर सकेंगे।

बीरसेन–तू इस समय कलाई कट जाने के कारण तकलीफ में है इसलिए मैं अपने साथ तुझे वहां ले जाना उचित नहीं समझता, जहां महारानी के मिलने की आशा है, अस्तु वहां का पता मुझे अच्छी तरह बता दे और तू मेरे आदमियों के साथ किले में जा, वहां तेरे जख्म पर दवा लगाई जाएगी।

आदमी–बहुत अच्छा, मैं आपको पता बताए देता हूं। (हाथ का इशारे से) आप सीधे इसी तरफ चले जाइए, यहां से कोस भर चले जाने के बाद एक गांव मिलेगा।

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