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उपन्यास >> कुसम कुमारी

कुसम कुमारी

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :183
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9703
आईएसबीएन :9781613011690

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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी

ऐसी-ऐसी बहुत सी बातें वह घंटों तक सोचता रहा, आखिरकार उठ खड़ा हुआ और सीधे उस मकान में पहुंचा, जहां रनबीरसिंह और जसवंतसिंह कैद थे।

बालेसिंह की सूरत देखते ही रनबीरसिंह ने पूछा, ‘‘क्यों साहब, आपका सिपाही महारानी के पास से वापस आया?’’

बालेसिंह–हम लोगों का फैसला ईश्वर ही ने कह दिया!!

रनबीर–वह क्या?

बालेसिंह–महारानी ने परलोक की यात्रा की! अब आपको भी मैं छोड़े देता हूं जहां जी चाहे जाइए। यह लीजिए आपके कपड़े और ढाल तलवार इत्यादि भी हाजिर हैं।

बालेसिंह की बात सुनते ही रनबीरसिंह ने जोर से ‘हाय’ मारी और बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े। बालेसिंह ने जल्दी से उनकी हथकड़ी-बेड़ी खोल डाली और मुंह पर बेदमिश्क वगैरह छिड़ककर होश में लाने की फिक्र करने लगा। जसवंतसिंह को भी कैद से छुट्टी दे दी।

कैद से छूट और महारानी के मरने का हाल सुन जसवंतसिंह की नीयत फिर बदली। जी में सोचने लगा कि अब रनबीरसिंह की तरफ से नीयत खराब रखनी मुनासिब नहीं क्योंकि इसके साथ रहने में जिस खुशी के साथ जिंदगी बीतती है वैसी खुशी इससे अलग होने पर नहीं मिल सकती। सिवाय इसके महारानी तो मर ही गई जिनके लिए बहुत कुछ सोचे हुए था, इसलिए अब तो इनके साथ पहले ही की तरह मिल-जुलकर ही रहना मुनासिब है, मगर अभी इस बात का पूरा यकीन कैसे हो कि महारानी मर गईं। दुश्मन की बात का पूरा यकीन करना बिलकुल भूल और नादानी है।

बहुत देर के बाद रनबीरसिंह होश में आए मगर मुंह से कुछ न बोले और न अपना इरादा ही कुछ जाहिर किया कि अब वे क्या करेंगे। उठ खड़े हुए, अपने कपड़े पहने और हर्बो को लगा शहर के बाहर की तरह रवाना हुए। जसवंत भी इनके साथ हुआ, किसी ने टोका भी नहीं कि कहां जाते हो।

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