उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
हाय, बेचारी नेक महारानी की खैरख्वाह और नमकहलाल मालती ने दो ही चार दफा हाथ-पांव पटक हमेशा के लिए इस बदकार नमकहराम कालिंदी का साथ छोड़ दिया और किसी-दूसरी ही दुनिया में जा बसी। मगर उसी समय बाहर के दालान के एक कोने से यह आवाज आई ‘‘ऐ कालिंदी! खूब याद रखियो कि तेरी यह शैतानी छिपी न रहेगी, जो कुछ तैंने सोचा है कभी वह काम पूरा न होगा और बहुत जल्दी तुझे इस बदकारी की सजा मिलेगी!’’
इस आवाज ने कालिंदी की अजीब हालत कर दी और वह एकदम घबराकर चारों तरफ देखने लगी, मगर थोड़ी ही देर में उसकी दशा बदली और वह खून से भरा खंजर मालती के कलेजे से निकाल हाथ में ले कमरे से बाहर निकली और भूखी राक्षसी की तरह इधर-उधर घूम-घूमकर देखने लगी जिसमें उस आदमी का भी काम तमाम करे जिसने उसकी कार्रवाई देख-सुन ली है, मगर उसने मकान भर में किसी जानदार की सूरत न देखी। कई दफे ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर गई मगर कुछ पता न लगा, तब खड़ी होकर सोचने लगी। इसी बीच में कई दफे उसकी सूरत ने पलटा खाया जिससे मालूम होता था वह डर और तरद्दुद में पड़ी हुई है, मगर यकायक वह ठमक पड़ी और तब चौंककर आप ही आप बोली, ‘‘ओफ! मुझे डर किस बात का है? मगर किसी ने मेरी कार्रवाई देख ही ली तो क्या हुआ? अब मुझे यहां रहना थोड़े ही है। हां, अब जल्दी करनी चाहिए, बहुत जल्दी करनी चाहिए!’’
कालिंदी तेजी के साथ एक दूसरी कोठरी में घुस गई जिसमें उसके पहनने के कपड़े रहते थे और थोड़ी ही देर बाद मर्दानी पोशाक पहने हुए बाहर निकली नकाब की जगह रेशमी रूमाल मुंह पर बांधे हुए थी जिसमें देखने के लिए आंख के सामने दो छेद किए हुए थे, कमर में खंजर खोंसे और हाथ में कमंद लिए वह छत पर चढ़ गई और उसी के सहारे बेधड़क पिछवाड़े की तरफ उतर एक तरफ को रवाना हुई।
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