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उपन्यास >> नदी के द्वीप

नदी के द्वीप

सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9706
आईएसबीएन :9781613012505

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व्यक्ति अपने सामाजिक संस्कारों का पुंज भी है, प्रतिबिम्ब भी, पुतला भी; इसी तरह वह अपनी जैविक परम्पराओं का भी प्रतिबिम्ब और पुतला है-'जैविक' सामाजिक के विरोध में नहीं, उससे अधिक पुराने और व्यापक और लम्बे संस्कारों को ध्यान में रखते हुए।


भुवन ने कहा, “हाँ, हाउ इज़ शी?”

“आपरेशन तो ठीक हो गया। सो गयी हैं। मैं और पूछ आऊँ?” भुवन ने निहोरे से कहा, “प्लीज़।”

नर्स चली गयी। थोड़ी देर बाद डाक्टर भी साथ आ गया। डाक्टर बोला, “शी इज़ आल राइट नाउ। थैंक गाड। लेकिन-मिनटों की बात थी-शी इज ए वेरी ब्रेव वुमन...” सहसा रुककर उसने पूछा, “लेकिन-हाउ डिड इट हैपन-कोई चोट-ओट-”

भुवन क्या कहे? संक्षिप्त हाँ कह देने से तो नहीं चलेगा; और चोट के बारे में इतनी जल्दी कहानी भी वह नहीं गढ़ सकेगा! बोला, “आई डोंट नो-इट हैपंड सडनली।”

डाक्टर ने सिर हिलाया। ऐसा भी होता है...फिर पूछा, “आप उनके....”

भुवन ने कहा, “नहीं-ओनली ए-रिलेशन।” फिर परिचय देना उचित समझकर बोला, “भुवन इज़ माई नेम-डाक्टर भुवन।”

डाक्टर ने हाथ बढ़ाते हुए कहा, “माइन'ज़ पिनकॉट।” हाथ मिलाते हुए पूछा, “मेडिकल?”

भुवन ने कहा, “नो फ़िज़िक्स। कास्मिक रेज़ एण्ड थिंग्स।”

डाक्टर ने कहा, “मिल कर ख़ुशी हुई-पर अब मुझे जाना चाहिए। मस्ट गेट सम स्लीप।”

“थैंक यू, डाक्टर।”

सहसा कुछ याद करके डाक्टर ने कहा, “आपरेशन के बाद होश आते ही-शी आस्क्ड़ फ़ार यू। लेकिन...” कन्धे सिकोड़ कर उसने यह आशय व्यक्त किया कि भेंट तो, आप समझ सकते हैं, असम्भव थी। फिर कहा, “आप शाम को आइये-आई थिंक शी विल बी एबल टु सी यू।”

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