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उपन्यास >> नदी के द्वीप

नदी के द्वीप

सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9706
आईएसबीएन :9781613012505

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व्यक्ति अपने सामाजिक संस्कारों का पुंज भी है, प्रतिबिम्ब भी, पुतला भी; इसी तरह वह अपनी जैविक परम्पराओं का भी प्रतिबिम्ब और पुतला है-'जैविक' सामाजिक के विरोध में नहीं, उससे अधिक पुराने और व्यापक और लम्बे संस्कारों को ध्यान में रखते हुए।


भुवन, तुम्हें एक समाचार देना चाहती हूँ। नहीं जानती कि तुम्हें कैसा लगेगा, पर-जानती हूँ तुम प्रसन्न ही होगे। मुझे आशीर्वाद दो, भुवन। डाक्टर रमेशचन्द्र ने मुझसे विवाह का प्रस्ताव किया था; मैंने उन्हें स्वीकृति दे दी है। इसी महीने के अन्तिम सप्ताह में विवाह हो जाएगा। सम्भव है कि विवाह के दो-एक महीने बाद वह 'मिडल ईस्ट' की तरफ़ कहीं जावें-मैं भी साथ ही जाऊँगी शायद। काम मैंने अभी नहीं छोड़ा है, पर आठ-दस दिन बाद छोड़ दूँगी।

विवाह के लिए हम दार्जिलिंग जावेंगे - रमेश का आग्रह है। कोई समारोह नहीं होगा-लेकिन क्योंकि 'कानूनी आधार' आवश्यक है - यह लीगैलिटी, भुवन!-इसलिए रजिस्ट्रेशन तो होगा ही।

यह क्या है, भुवन? बरसों मैं श्रीमती हेमेन्द्र कहलायी, उसके क्या अर्थ थे? अब अगले महीने से श्रीमती रमेशचन्द्र कहलाऊँगी - उसके भी क्या अर्थ हैं? कुछ अर्थ तो होंगे, अपने से कहती हूँ; पर क्या, यह नहीं सोच पाती...मैं इतना ही सोच पाती हूँ कि मेरे लिए यह समूचा श्रीमतीत्व मिथ्या है, कि मैं तुम्हारी हूँ, केवल तुम्हारी; तुम्हारी ही हुई हूँ, और किसी की कभी नहीं, न कभी हो सकूँगी...ये पार्थिवता के बन्धन, ये आकार, ये सूने कंकाल...महाराज, मेरे त्रिभुवन के महाराज, किस साज में तुम आये मेरे हृदय-पुर में-और कैसे तुम चले गये, मेरा गर्व तोड़कर, भूमि में लुटाकर-पर नहीं भुवन, तोड़कर नहीं, तुम्हीं मेरे गर्व हो, तुम्हारे ही स्पर्श से 'सकल मम देह-मन वीणा सम बाजे...।

रमेश को मैं धोखा नहीं दे रही। मैंने उन्हें बताया है। पर क्या बताया है, क्या मैं बता सकती हूँ, भुवन? उनमें बड़ी उदारता है, गहरी संवेदना है, वह समझते हैं। तुम उन्हें जानते, तो बहुत अच्छा होता - तुम्हें निश्चय ही वह अच्छे लगते। मैं कल्पना करती हूँ, मैं तुम दोनों को समीप ला सकती - मिला सकती - दोनों को जिन से मैंने बहुत कुछ पाया है, जिन्हें मैंने बहुत कुछ दिया है...शायद भविष्य में वह कभी हो सके, मैं नहीं मानना चाहती कि यह सम्भव नहीं है क्योंकि वैसा मानना, मुझे लगता है, दोनों के प्रति विश्वासघात होगा...।

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