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उपन्यास >> पथ के दावेदार

पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710
आईएसबीएन :9781613014288

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


मशीन के पुर्जों की तरह अपूर्व उठकर खड़ा हो गया। लेकिन क्रोधित मनोहर की अंतिम बातें याद आते ही उसके शरीर का रक्त जैसे ठंडा पड़ने लगा।

गिरीश ने उसके पास आकर कहा, “सम्भवत: मुझे आप भूले नहीं होंगे। यह सभी लोग मुझे डॉक्टर कहते हैं” कहकर वह हंस पड़े।

अपूर्व हंस न सका। लेकिन धीरे-धीरे बोला, “मेरे चाचा जी के रजिस्टर में आपका कोई भयानक नाम लिखा हुआ है।”

गिरीश ने एकाएक उसके दोनों हाथ अपने हाथ में लेकर धीरे से कहा, “सव्यसाची ही न?” फिर हंसते हुए बोले, 'लेकिन अब रात हो गई है अपूर्व बाबू!” चलिए आपको कुछ दूर तक पहुंचा आऊं। रास्ता कोई अच्छा नहीं है। पठान मजदूर जब शराब पी लेते हैं तब उन्हें बिल्कुल सुध-बुध नहीं रहती। चलिए, “यह कहकर एक तरह से जबर्दस्ती ही उसे कमरे से बाहर ले गया।”

उसे सुमित्रा को भी नमस्कार करने का अवसर नहीं मिला। न भारती से ही कोई बात कह सका। लेकिन जिस बात से उसके हृदय को धक्का लगा, वह था उसके चाचा का रजिस्टर, जिसमें उस विद्रोही का नाम लिखा था।

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