लोगों की राय

उपन्यास >> पथ के दावेदार

पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710
आईएसबीएन :9781613014288

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

286 पाठक हैं

हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


तिवारी रसोई बनाने की व्यवस्था करने लगा और अपूर्व कमरा सजाने में लग गया। काठ के आले पर कपड़े सजाकर रख दिए। बिस्तर खोलकर चारपाई पर बिछा दिया। एक नया टेबल क्लाथ मेज पर बिछाकर उस पर लिखने का सामान और कुछ पुस्तकें रख दी। उत्तर की ओर खुली खिड़की के दोनों पल्लों को अच्छी तरह खोलकर उसके दोनों कोनों में कागज ठूंसकर सोने वाले कमरे को सुंदर बनाकर बिस्तर पर लेटकर सुख की सांस ली।

दरबान ने लोहे का चूल्हा ला दिया। तभी याद आया, मां ने सिर की सौगंध देकर पहुंचते ही तार करने को कहा था। इसलिए दरबान को साथ लेकर चटपट बाहर निकल गया। महाराज से कहता गया कि एक घंटे पहले ही लौट आऊंगा।

आज किसी ईसाई त्यौहार के उपलक्ष में छुट्टी थी। अपूर्व ने देखा, यह गली देशी-विदेशी साहब-मेमों का मुहल्ला है। यहां के प्रत्येक घर में विलायती उत्सव का कुछ-न-कुछ चिन्ह अवश्य दिखाई दे रहा है। अपूर्व ने पूछा, “दरबान जी! सुना है, यहा बंगाली भी तो बहुत हैं। वह किस मुहल्ले में रहते हैं?”

उसने बताया कि यहां मुहल्ले जैसी कोई व्यवस्था नहीं है। जिसकी जहां इच्छा होती है, वहीं रहता है। लेकिन अफसर लोग इसी गली को पसंद करते हैं। अपूर्व भी अफसर था। कट्टर हिंदू होते हुए भी किसी धर्म के विरुद्ध भावना नहीं थी। फिर भी स्वयं को ऊपर-नीचे, दाएं-बाएं, भीतर-बाहर, चारों ओर से ईसाई पड़ोसियों को करीब देख अत्यंत घृणा अनुभव करते हुए उसने पूछा, “क्या किसी दूसरे स्थान पर घर नहीं मिल सकेगा?”

दरबान बोला, “खोजने से मिल सकता है। लेकिन इतने किराए में ऐसा मकान मिलना कठिन है।”

अपूर्व जब तार घर पहुंचा तो तारबाबू खाना खाने चले गए थे। एक घंटे प्रतीक्षा करने के बाद जब आए तो घड़ी देखकर बोले, “आज छुट्टी है। दो बजे ऑफिस बंद हो गया।”

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book