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उपन्यास >> श्रीकान्त

श्रीकान्त

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :598
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9719
आईएसबीएन :9781613014479

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शरतचन्द्र का आत्मकथात्मक उपन्यास


“कह क्या रहा है तू?”

राजलक्ष्मी का चेहरा एकबारगी फक पड़ गया।

मगर बात खतम होते न होते बहुत-से लोग एक साथ कह उठे, “नहीं, नहीं माता-रानी एकदम मार नहीं डाला। खूब मारा तो जरूर है, पर जान से नहीं मारा।”

रतन ने आँखें तरेरकर कहा, “तुम लोग क्या जानते हो? उसको अस्पताल भेजना होगा, लेकिन उसका पता नहीं, ढूँढे मिल नहीं रही है। न जाने कहाँ गयी। तुम सबके हाथ हथकड़ी पड़ सकती है, जानते हो?”

सुनते ही सबके मुँह सूख गये। किसी-किसी ने सटकने की भी कोशिश की। राजलक्ष्मी ने रतन की तरफ बड़ी निगाह से देखते हुए कहा, “तू उधर जाकर खड़ा हो, चल। जब पूछूँ? तब बताना। भीड़ के अन्दर मालती का बूढ़ा बाप फक चेहरा लिये खड़ा था; हम सभी उसे पहिचानते थे, इशारे से उसे पास बुलाकर पूछा, “क्या हुआ है विश्वनाथ सच-सच तो बताओ। छिपाने से या झूठ बोलने से विपत्ति में पड़ सकते हो।”

विश्वनाथ जो कुछ कहा, उसका संक्षिप्त सार यह है-कल रात से मालती अपने बाप के घर थी। आज दोपहर को वह तालाब में पानी भरने गयी थी। उसका पति नवीन वहीं कहीं छिपा हुआ था। मालती को अकेली पाकर उसने उसे खूब मारा- यहाँ तक कि सिर फोड़ दिया। मालती रोती हुई पहले यहाँ आई, पर हम लोगों से भेंट न हुई, तो वह गयी कुशारीजी की खोज में कचहरी। वहाँ उनसे भी मुलाकात न हुई, तो फिर वह सीधी चली गयी थाने में। वहाँ मारने-पीटने के निशान दिखाकर पुलिस को अपने साथ ले आई और नवीन को पकड़ा दिया। वह उस समय घर ही पर था, अपने हाथ से मुट्ठी-भर चावल उबालकर खाने बैठ रहा था, लिहाजा उसे भागने का भी मौका न मिला। दरोगा साहब ने लात मारकर उसका भात फेंक दिया, और फिर वे उसे बाँधकर ले गये।

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